श्वेत (द्वीप)

Disamb2.jpg श्वेत एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- श्वेत (बहुविकल्पी)

श्वेत का उल्लेख हिन्दू पौराणिक महाकाव्य महाभारत में हुआ है। 'महाभारत शान्ति पर्व' के अनुसार यह एक द्वीप का नाम था।[1]

'महाभारत शान्ति पर्व' में श्वेत द्वीप तथा वहाँ के निवासियों के स्वरूप का वर्णन हुआ है। यहाँ उल्लेख मिलता है कि, "मेरु के शिखर पर एकान्त में जाकर नारद मुनि ने दो घड़ी तक विश्राम किया। फिर वहाँ से उत्तर-पश्चिम की ओर दृष्टिपात करने पर उन्होंने पूर्व-वर्णित एक अद्भुत दृश्य देखा। क्षीरसागर के उत्तर भाग में जो श्वेत नाम से प्रसिद्ध विशाल द्वीप है, वह उनके सामने प्रकट हो गया। विद्वानों ने उस द्वीप को मेरु पर्वत से बत्तीस हजार योजन ऊँचा बताया है। वहाँ के निवासी इन्द्रियों से रहित, निराहार तथा चेष्टारहित एवं ज्ञानसम्पन्न होते हैं। उनके अंगों से उत्तम सुगंध निकलती रहती है। उस द्वीप में सब प्रकार के पापों से रहित श्वेत वर्ण वाले पुरुष निवास करते हैं। उनकी ओर देखने से पापी मनुष्य की आँखें चौंधिया जाती हैं। उनके शरीर तथा हड्डियाँ वज्र के समान सुदृढ़ होती हैं। वे मान और अपमान को समान समझते हैं। उनके अंग दिव्य होते हैं। वे शुभ[2] बल से सम्पन्न होते हैं। उनके मस्तक का आकार छत्र के समान और स्वर मेघों की घटा के गर्जन की भाँति गम्भीर होता है।[3]

उनके बराबर-बराबर चार भुजाएँ होती हैं। उनके पैर सैंकड़ों कमल सदृश रेखाओं से सुशोभित होते हैं। उनके मुँह में साठ सफेद दाँत और आठ दाढ़ें होती हैं। वे सूर्य के समान कान्तिमान् तथा सम्पूर्ण विश्व को अपने मुख में रखने वाले महाकाल को भी अपनी जिह्वाओं से चाट लेते हैं। जिनसे सम्पूर्ण विश्व उत्पन्न हुआ है, सारे लोक प्रकट हुए हैं, वेद, धर्म, शान्त स्वभाव वाले मुनि तथा सम्पूर्ण देवता जिनकी सृष्टि हैं, उन अनन्त शक्ति-सम्पन्न परमेश्वर को श्वेत द्वीप के निवासी भक्तिभाव से अपने हृदय में धारण करते हैं।"


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 110 |
  2. योग के प्रभाव से उत्पन्न
  3. महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 335 श्लोक 1-12

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