(श्री मदन मोहन जू) मति डारौ केसरि पिचकारी।
दधि ही मथति जाहुँ जमुना जल हो मोहन तुम कुज बिहारी।।
मनौ के गुरुजन पुर जन जानै नहिं वा बृंदावन की नारी।
सासु रिसाइ लरौ मेरी नँनदी देखै रंग दहि मोहि गारी।।
मुरली मैं पावत बंगाली अधर चुवत अमृत बनवारी।
मुदित पियत सतनि सुखकारी पूरब खचित नेह गिरिधारी।।
मृदु मुसुकानि जुवति मन मोहत हौ हरि माखनचोर मुरारी।
'सूरदास' प्रभु दोउ चिरजीवौ ब्रजनायक वृषभानु दुलारी।। 121 ।।