श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
70. अनिरुद्ध का अपहरण
मध्यरात्रि के पश्चात अनिरुद्ध अपने अन्तःपुर में सोये थे। वे स्वप्न में एक अपूर्व सुन्दर युवती को देख रहे थे। उन्हें कोई द्वारिका से ग्यारह सहस्र योजन दूर उठा लाया इसका उनको पता नहीं था। अचानक बहुत मधुर वीणा की संगीत लहरी से उनकी निद्रा टूटी। उन्होंने नेत्र खोला और इधर-उधर देखते ही चौंककर बैठ गये। कक्ष भरपूर सज्जित था और उसमें मणियों का मन्द प्रकाश था, किन्तु यह द्वारिका का उनका अपना कक्ष तो नहीं है। अनिरुद्ध चकित देखने लगे। कक्ष के एक कोने में वीणा लिये एक सुन्दरी बैठी वीणा बजा रही थी। अनिरुद्ध को उठकर बैठते उसने देखा तो वीणा रखकर खड़ी हो गयी। अनिरुद्ध शैय्या से उठकर उसके समीप पहुँचे और चौंके, स्वप्न में यही सुन्दरी तो उनके समीप थी। उषा उनके चरणों पर झुकी- 'आपके इन चरणों की दासी।' अनिरुद्ध ने उसे भुजाओं में भर लिया। द्वारिका में अनिरुद्ध अपनी शैय्या पर नहीं मिले तो ब्रह्ममूहुर्त से पूर्व ही उनके अन्तःपुर में स्त्रियों का रुदन-क्रन्दन गूँजने लगा। शय्या पर उत्तरीय भी पड़ा था। इसका अर्थ था कि अनिरुद्ध का अपहरण हुआ है। स्त्रियों की ध्वनि सुनकर दूसरी स्त्रियाँ वहाँ पहुँची और शीघ्र ही समाचार पूरे नगर में फैल गया। यादव वीर अपने भवनों से शस्त्र सन्नद्ध निकल पड़े। श्रीकृष्णचन्द्र के सदन में युद्धघोष करती भेरी बजने लगी। रात्रि में ही महाराज उग्रसेन सुधर्मा सभा में पहुँचे। यादवराज परिषद का विशेष अधिवेशन कुछ ही समय में प्रारंभ हो गया। सम्पूर्ण सेना शस्त्र सज्ज कहीं भी प्रस्थान को खड़ी थी। सात्यकि ने राजसभा में अधिवेशन से भी पूर्व रथ तथा अश्व देकर गुप्तचर तथा प्रकटचर चारों ओर अनिरुद्ध का पता लगाने के लिए आवश्यक निर्देश देकर भेज दिये। महासेनापति अनाधृष्ट पहिले बोले- 'केशव! आपने अनेकों असुरों को मारा है। असुर तो आपके शत्रु हैं ही, पारिजात हरण के कारण इन्द्र भी मित्र नहीं रहे हैं। वे भी अनिरुद्ध का हरण कर सकते हैं।' श्रीकृष्णचन्द्र उठे- 'सेनापति, मैं देवराज को जानता हूँ और वे भी मुझे जानते हैं। वे अथवा कोई देवता ऐसा काम करके यमराज से शत्रुता करने का साहस नहीं करेंगे। असुरों में भी कोई इस प्रकार का मुझे इस समय नहीं लगता। मुझे तो इस अपहरण में किसी स्त्री का हाथ जान पड़ता है।, गुप्तचर और प्रकटचर भी सब लौट आये। उन्होंने वन, पर्वत, गुफायें, उद्यान, धर्मस्थान, नदी, सरोवर, नगर ग्राम झोंपड़े, मुनियों के आश्रम आदि सब कई-कई बार देख लिये थे। कहीं अनिरुद्ध का पता नहीं था। द्वारिका में लोग कहने लगे थे- 'श्रीद्वारिकाधीश के ज्येष्ठ कुमार का भी ऐसे ही हरण हुआ था और सोलह वर्ष पर वह पत्नी लेकर आये थे। जब उनके ज्येष्ठ पुत्र का अपहरण हुआ है। ये भी वधू लेकर लौटें तो आश्चर्य नहीं, किन्तु पता नहीं ये कब लौटते हैं।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज