श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
53. शाल्व-शमन
शाल्व ने सौभ में पहुँचते ही शस्त्रों की झड़ी लगा दी। सात्यकि, प्रद्युम्नादि उन शरों, अस्त्रों को काटने में लगे थे। अब श्रीकृष्णचन्द्र ने धनुष उठाया और शाल्व का धनुष, कवच तो उन बाणों से कट ही गया, उसके मस्तक के मुकुट में लगी महामणि भी कटकर गिर पड़ी। मय ने यह मणि देकर उसे कहा था- 'सौभ विमान का संचालन इस मणि की शक्ति से आप स्वेच्छानुसार कर सकेंगे।' मणि कटकर गिरते ही विमान अस्त-व्यस्त हो उठा था। उस पर श्रीकृष्ण की गदा का भारी प्रहार पड़ा तो वह टुकड़े-टुकड़े होकर समुद्र में गिर पड़ा। शाल्व विमान के गिरते समय कूदकर भूमि पर आ गया था गदा लेकर। वह अपनी गदा उठाये पूरे वेग से दौड़ा श्रीद्वारिकाधीश की ओर किन्तु बाणों से उसकी गदा उठाने वाली वह भुजा ही श्रीकृष्णचन्द्र ने काट फेंकी। अब उन चक्रपाणि ने अपना चक्र उठाया। वह सहस्रादित्य संकाश महाज्वालावृत चक्र, उसके आघात से शाल्व का मस्तक ऐसे छिन्न होकर गिर पड़ा जैस वज्र के प्रहार से इन्द्र ने वृत्र का सिर काट दिया था। शाल्व मायावी था। विमान पाकर दुर्घर्ष हो गया था। सुर भी उससे सशंक रहते थे। उसके मारे जाने पर देवताओं को सबसे अधिक प्रसन्नता हुई। वे गगन में दुन्दुभियाँ बजाने, पुष्पवर्षा करने में लग गये थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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