श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
4. रुक्मिणी विवाह
जरासन्ध इस ओर से उदासीन नहीं था। गोमन्तक पर्वत के चक्र-मौसल युद्ध में पराजित होकर जरासन्ध एक बार साहस खो बैठा था। स्वयम्वर के समय इसी से श्रीकृष्ण के साथ युद्ध करने में हिचक हुई थी। लेकिन अन्तिम बार बलराम-श्रीकृष्ण दोनों भाई उसके सम्मुख युद्ध किये बिना ही भाग खड़े हुए। जरासन्ध को लगा- वासुदेव के दोनों पुत्र भीरु हैं। वह व्यर्थ इनसे डर रहा था। यह स्पष्ट था- सब इसे समझते थे कि जरासन्ध के भय से ही यादव मथुरा त्यागकर द्वारिका में जा बसे हैं। इससे जरासन्ध ही नहीं, उसके सभी साथी, समर्थकों का साहस बढ़ गया था। विदर्भ के लिए जब जरासन्ध ने ब्राह्मण भेजा, शिशुपाल के लिए कन्या-माँगने का सन्देश देखकर तो उसे विश्वास था कि उसकी प्रार्थना अस्वीकृत नहीं होगी। उसने उसी समय अपने सहायक नरेशों के पास सम्पूर्ण सेना लेकर आने का सन्देश भेजते हुए कहला दिया- ‘विदर्भाधिप की कन्या रुक्मिणी का शिशुपाल से विवाह होने वाला है। यदि यादव कन्या-हरण का प्रयत्न करें तो हम पूरी शक्ति से प्रतिकार करेंगे।' जो-जो भी नरेश श्रीकृष्ण से रुष्ट थे, सबको मगध राज ने आमन्त्रित किया। दन्तवक्र का महामायावी पुत्र सुवक्र, पौण्ड्रक का पुत्र सुदेव, एकलव्य का पुत्र, पाण्ड्यराज का पुत्र, कलिंग नरेश, राजावेणुदारि, क्रथ का पुत्र अंशुमान, श्रुतधर्म, कलिंगराज, गांधार नरेश, कौशाम्बी पति- ये विशेष आग्रह करके बुलाये गये और अपनी पूरी सेना लेकर आये। शाल्व, भगदत्त, दन्तवक्र, शल, विदूरथ, भूरिश्रवा, कुन्तिवीर्यादि जरासन्ध के साथी तो आये ही। शिशुपाल की राजधानी चन्द्रिकापुरी से इस बारात ने प्रस्थान किया। बारात की अपेक्षा यह बड़ी सेना थी अनेक पराक्रमी प्रसिद्ध नरेशों की और युद्ध-यात्रा जैसा ही प्रबंध था। मगधराज की सम्मति के अनुसार सुनीथ (दमघोष) ने अपने पुत्र के वैवाहिक मंगलकृत्य कुण्डिनपुर पहुँचकर ही करने का निश्चय किया था। क्योंकि इस बारात को सुरक्षा की दृष्टि से पहिले पहुँचना था। बारात विदर्भ पहुँची तो विदर्भ-नरेश महाराज हिरण्यरोमा (भीष्मक) जी तथा उनके चार पुत्र रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेश एवं रुक्ममाली में कोई उत्साह नहीं था। उत्साह था ज्येष्ठ कुमार युवराज रुक्मी में। महाराज भीष्मक तथा उनके छोटे चारों पुत्र श्रीकृष्ण को रुक्मिणी देना चाहते थे; किन्तु एक ही कन्या- पांच भाइयों में सबसे छोटी, उसके विवाह में विवाद उठे- इससे सब बचाना चाहते थे। अतः सभी कर्तव्य के पालन में लगे थे। बारात का बड़े उत्साह से स्वागत किया युवराज रुक्मी ने। उन्होंने सभी नरेशों को निवास दिया। मगधराज जरासन्ध ने राजधानी कुण्डिनपुर के चारों ओर दूर दूर तक के प्रदेश का निरीक्षण किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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