श्री जमुना निज दरसन दीजै -सूरदास

सूरसागर

2.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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राग सारंग





श्री जमुना निज दरसन दीजै।
आस करौ गिरिधरन लाल की इतनी कृपा करीजै।।
हौ चेरी महरानी तेरी चरनकमल रखि लीजै।
विलँब करौ जिनि बोलि लेहु मोहिं दरस परस नित कीजै।।
करौ निबास उर अंतर मेरै स्नवन सुजस सुनि लीजै।
प्रानप्रिया की खरी पियारी पानि पकरि अब लीजै।।
हौ न अझ मूढ मति मेरी अनत नही चित भीजै।
'सूरदास' मोहि यह आसा है निरखि निरखि मुख जीजै।। 46 ।।

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