पूर्ण शशि मुख देख के लाल, चित चोट्यो बाही ठोर ॥
रूप सुधारस पान के लाल, सादर चंद्र चकोर हो ॥7॥
लोक लाज कुल वेद की लाल, छांड्यो सकल विवेक ॥
कमल कली रवि ज्यों बढे लाल, क्षणु क्षणु प्रीति विशेष हो ॥8॥
मन्मथ कोटिक वारने लाल, देखी डगमग चाल ॥
युवती जन मन फंदना लाल, अंबुज नयन विशाल ॥9॥
यह रट लागी लाडिले लाल, जैसे चातक मोर ॥
प्रेम नीर वर्षाय के लाल नवघन नंदकिशोर हो ॥10॥
कुंज भवन क्रीडा करे लाल, सुखनिधि मदन गोपाल ॥
हम श्री वृंदावन मालती लाल, तुम भोगी भ्रमर भूपाल हो ॥11॥
युग युग अविचल राखिये लाल, यह सुख शैल निवास ॥
श्री गोवर्धनधर रूप पें बलजाय चतुर्भुज दास ॥12॥