श्रीशुकदेव जी की माधुर्योपासना
कृष्णदास कविराज ने इसीलिये कहा था-
आत्म सुख दु:ख गोपी न करे विचार।
कृष्ण सुख हेतु करे सब व्यवहार॥
कृष्ण बिना और सब करि परित्याग।
कृष्ण सुख हेतु करे शुध्द अनुराग॥
माधुर्यभाव का तात्पर्य निजेंद्रिय-सुख की कामना नहीं है, वह तो श्रीकृष्ण के सुख के लिये है। श्रीमती कुब्जा को छोड़कर अन्य किसी में निज सुख की कामना नहीं है। मेरा विचार है कि शुद्ध माधुर्य वृन्दावन में है। मथुरा ऐश्वर्यलीला की भूमि है, अत: वहाँ कुब्जा में यह भाव उत्पन्न हो सकता है। श्रीशुकदेवजी ने कुब्जा को यहाँ गोपियों से हीन मानकर कहा है- परीक्षित! कुब्जा ने केवल अंगराज समर्पित कर उस परमतत्त्व को पा लिया जो अत्यंत कठिन है, परंतु उस दुर्भगा ने उसे प्राप्त करके भी व्रजगोपियों की भाँति सेवा न माँगकर विषयसुख माँगा। जो भगवान को प्रसन्न करके उनसे विषयसुख की याचना करता है, वह निश्चय ही दुर्बुद्धि है; क्योंकि वास्तव में विषयसुख अत्यंत तुच्छ है-
सैवं कैवल्यनाथं तं प्राप्य दुष्प्रापमीश्वरम्।
अगंरागार्पणेनाहो दुर्भगेदमयाचत॥
दुराराध्यं समाराध्य विष्णुं सर्वेश्वरम्।
यो वृणीते सनोग्राह्यमसत्त्वात् कुमनीष्यसौ॥[1]
श्रीशुकदेवजी कुब्जा को दुर्भगा कहते हैं, पर गोपियों को भगवान श्रीकृष्ण महाभागा कहते हैं। रास की रात्री में पधारी हुई गोपियों को देखकर वे कह उठते हैं-
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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