राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 254

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीब्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला

(श्रीकृष्ण-प्रवचन)

श्रीकृष्ण- अहा, यह ब्रज बैकुंठ हू सौं उत्कृष्ट तथा मेरे निज धाम गोलोक हू सौं अति श्रेष्ठ सौंदर्यमय सोभा कूँ प्राप्त है रह्यौ है। यामें मेरी तनी ममता क्यों है याकौ हू उत्तर थोरे से सब्दन में यह है कि ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’ अस्तु यह मेरी जन्मभूमि है।

संसार में तौ मैं पूज्यौ हूँ, किंतु या ब्रज में तौ मैं ही पुजारी बन्यौ हूँ और गोपी-गोप गैयान की मैंने स्वयं ही पूजा करी है। वास्तव में या ब्रज कौ-सौ बिलच्छन प्रेम कहूँ देखिबे में नहीं आयौ।

संक्षिप्त उदाहरण में मैया जसोदा दूध पिबायबे के समय म रे मुख सौं तौ दूध कौ कटोरौ लगाय देय है और ऊपर सौं थप्पर की ताड़ना दैकैं कहै है ‘अरे कन्हैया! कै तौ या सबरे दूध कूँ पी जैयो, नहीं तौ दारीके! तेरी चुटिया छोटी-सी रहि जायगी। धन्य है या प्रेम कूँ! या प्रेम-डोर में बँधि कै फिर मेरौ मन छूटिबे कूँ नहीं करै है।’
(रसिया)

कैसैहुँ छूटै नाहिं छाटायौ रसिया बँध्यौ प्रेम की डोर,
ऐसी प्रेममई ब्रजछटा घटा लखि नाचि उठै मन मोर।
मन मो स्वच्छंद फँस्यौ गोपिन के फंद,
कोई कहै ब्रज चंद, कोई आनँद कौ कंद।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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