श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
अधिकार और कर्तव्यगोपी-प्रेम दिव्य रसपूर्ण है। उस रस को साधारण मनुष्य कहाँ से प्राप्त करे और वाणी या लेखनी कैसे उसका वर्णन करे। हम लोगों को उचित है कि परम प्रेममयी गोपिकाओं का चरण-वन्दन करके उनसे प्रेम की भिक्षा माँगें और उनके प्यारे श्यामसुन्दर के नाम-गुणों का गान करके जन्म-जीवन को सफल करें। श्रीललित किशोरी जी कहते हैं-
श्यामसुन्दर आज भी हैं, उनकी लीला भी नित्य है। परंतु हमें वे श्यामसुन्दर कैसे दीखें और हमें उनके चरण धोने का सौभाग्य कैसे प्राप्त हो? नित्य-निरन्तर निष्काम प्रेमभाव से उनका नाम जपना, उनके गुणों का कीर्तन करना, उनके प्रेमी भक्तों का संग करना, उनके अनुकूल कार्य करना, उनके आज्ञानुसार चलना, उनके प्रत्येक विधान में संतुष्ट रहना, जगत् का मोह छोड़कर उनकी रूप माधुरी पर न्योछावर होने की साधना करना, उनकी लीलाओं का मनन करना और प्राण खोलकर, हृदय के अन्त स्तल से उनको पाने के लिये रोना-ये ही सब उपाय हैं। यदि चाहते हैं तो विषयासक्ति छोड़कर इन उपायों का अवलम्बन कीजिये। करते-करते आप ही भावों का विकास होगा और श्रीकृष्ण हमें सर्वस्वरूप में मिल जायँगे। बोलो गोपी और गोपी नाथ के पद-पह्य-पराग की जय! |
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