श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
मोक्ष-संन्यासिनी गोपियाँपरकीया का प्रेमास्पद जार होता है। भगवान परमात्मा में जार भाव कभी नहीं हो सकता। परमात्मा सर्वथा शुद्ध और निर्विकार हैं; इसलिये यही कहा जाता है कि गोपी-प्रेम में दिव्य परकीया भाव है, तो परम विशुद्ध, सर्वथा अनन्य तो है ही, वरं इससे भी परे उस कोटिका है, जहाँ तक हमारी कल्पना पहुँचती ही नहीं। इसी से वह अनिर्वचनीय और अचिन्त्य है। गोपी-प्रेम विलक्षण है। उसमें ‘श्रृंगार’ है, पर ‘राग’ नहीं है; ‘भोग’ है, पर ‘लौकिक अंगसंयोग’ नहीं है;‘आसक्ति’ है, पर ‘अज्ञान’ नहीं है; ‘वियोग’ है, पर ‘विछोह’ नहीं है; ‘क्रन्दन’ है; पर ‘दुःख’ नहीं है; ‘विरह’ है, पर ‘वेदना’ नहीं है; ‘सेवा’ है, पर ‘अभिमान’ नहीं है; ‘मान’ है, पर ‘धैर्य’ नहीं है; ‘त्याग’ है, पर ‘संन्यास’ नहीं है; ‘प्रलाप’ है, पर ‘बेहोशी’ नहीं है; ‘ममता’ है, पर ‘मोह’ नहीं है; ‘अनुराग’ है, पर ‘कामना’ नहीं है; ‘तृप्ति’ है, पर ‘अनिच्छा’ नहीं है; ‘सुख’ है, पर ‘स्पृहा’ नहीं है; ‘देह’ है, पर ‘अहं’ नहीं है; ‘जगत’ है, पर ‘माया’ नहीं है, ‘ज्ञान’ है; पर ‘ज्ञानी’ नहीं है, ‘ब्रह्म’ है, पर निर्गुण नहीं है; ‘मुक्ति’ है, पर ‘लय’ नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण और गोपियों की यह परम भाव की रास लीला नित्य है, प्रत्येकयुग में है, आज भी होती है; प्रत्येक युग के अधिकारी संतों ने इसे देखा है, अब भी अधिकारी देखते हैं, देख सकते हैं। यदि इस प्रकार के प्रेम की तनिक भी झाँकी देखकर धन्य होना चाहते हो, यदि इस अचिन्त्य प्रेमार्णव कोई एक बिन्दु प्राप्त करना चाहते हो तो भोग और मोक्ष की अभिलाष को छोड़ दो, श्रीकृष्ण में अपना चित्त जोड़ दो; प्राण खोलकर रोओ, उनके नाम और रूप पर आसक्त हो जाओ। बेच डालो अपना सब कुछ उनके एक रूप बिन्दु के लिये, सर्वस्व निछावर कर दो उनके चरणों पर; लगा दो अपना तन-मन, धन उनकी सेवा में; सदा के लिये अपना सम्पूर्ण आत्मसमर्पण कर दो। तुम पुरुष हो या स्त्री, ब्राह्मण हो या चाण्डाल, पुण्यात्मा हो या पापी- जो कुछ भी हो, दृढ़ता के साथ भगवान् श्रीकृष्ण के निज-जन बनने की प्रतिज्ञा कर लो। सारे जीवों में श्रीकृष्ण के दर्शन करो; सुख-दुःख, समत्ति-विपत्ति और जीवन-मरण-सभी में उस प्रेमास्पद को पहचानकर आनन्दानुभव करो। दिल खोलकर मुक्तकण्ठ से श्रीकृष्ण नाम का संकीर्तन करो, श्रीकृष्ण के लिये सच्चे हृदय से हृदय विदीर्णकारी क्रुन्दन करो, सब जगह श्रीकृष्ण रसिक शेखर त्रिभगं माधुरी देखो। उनकी कृपा होगी और तुम्हें प्रेम मिलेगा, तुम कृतार्थ हो जाओगे। सबको कृतार्थ कर दोगे! यह निश्चय रखो! जदपि जसोदा नंद अरु ग्वाल बाल सब धन्य। |
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