श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रेम और विधि-निषेधसंतशिरामणि प्रेममयी गोपियों के सम्बन्ध में उद्धव जी कहते हैं-
‘अहो! इन गोपियों की चरण रज का सेवन करने वाली वृन्दावन में उत्पन्न हुई गुल्म, लता और ओषधियों में से मैं कुछ भी हो जाऊँ (जिससे इन महाभागाओं की चरण रज मुझे भी प्राप्त हो); क्योंकि इन गोपियों ने बहुत ही कठिनता से त्याग किये जाने वाले स्वजनों को और आर्यपथ को त्याग कर भगवान मुकुन्द के मार्ग को पाया है, जिसको श्रुतियाँ अनादिकाल से खोज रही हैं (परंतु पातीं नहीं)।’ यह ‘आर्यपथत्याग’ उन कृष्णमयी गोपिकाओं के द्वारा ही हो सकता है, जो घर-संसार की दुस्त्यज ममता को सर्वथा छोड़कर, समस्त मोह के परदों को फाड़कर अनन्य रूप से सर्वथा, सर्वदा और सर्वत्र मुरली मनोहर श्रीकृष्ण में ही रमण करती थीं। जिनके जीवन का प्रत्येक क्षण भगवान में रमण करने के लिये ही सुरक्षित था, उन नित्य परमात्म योग में अखण्ड रूप से स्थित श्री गोपीजनों की दिव्य लीलाओं की नकल करने वाले विषयी मनुष्य तो गहरे पतन के समुद्र में गिरकर डूबते ही हैं! |
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क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ श्रीमद्भा० 10। 47। 61
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