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प्रेम पथ पर विरला ही चल सकता है
प्रेमपंथ अतिही कठिन सब पै निबहत नाहिं ।
- चढ़ि कै मोम तुरंग पै चलिबो पावक माहिं।।
- नारायन प्रीतम निकट सोई पहुँचनहार।
- गेंद बनावै सीस की खेलै बीच बजार।।
- ब्रह्मादिक के भोग सब बिषसम लागत ताहि।
- नारायन ब्रजचंद की लगन कगी है जाहि।।
ऐसे प्रेमी भक्त शीश उतारकर मरते नहीं। शीश उतारे फिरते हैं, परंतु प्यारे के लिये जीवन रखते हैं। मर जायँ तो प्यारे को दुःख हो, इसलिये जीते हुए ही मर जाते हैं अथवा मरकर भी जीते हैं। जिनकी ऐसी स्थिती हो गयी है, उनको धन्य है, उनके पिता-माता को धन्य है, उनके देश को धन्य है। उन्हीं का जन्म सफल होता है। ऐसा करने पर जब उन्हें प्रियतम मिल जाता है जब प्रियतम के साथ घुल-मिलकर वे अपने-आपको खो देते हैं, तब तो वे प्रियतम का स्वरूप ही बन जाते हैं-
तू तू करते तू भया, मुझमें रहीं न हूँ।
- जब ‘मैं’ था तब ‘हरि’ नहीं, अब ‘हरि’ है ‘मैं’ नाहि।
- प्रेमगली अति साँकरी, तामें, दो न समाहिं।।
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