श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रियतम का नित्य-स्मरण
जिसमें प्रेम होता है, उसमें चाहे एक भी सद्गुण न हो, चाहे वह दुर्गुणों की खानि हो, प्रेमी का हृदय उसके गुणों को नहीं देखता; वहाँ माप-तौल नहीं होता, वहाँ तो हृदय सदाके लिये निछावर किया हुआ रहता है। जब सद्गुणहीन और दुर्गुणी के प्रति भी सच्चे प्रेमीका प्रेम अटूट और सतत वर्धमान ही रहता है, तब भगवान को-जो सर्वसद्गुणों के आधार हैं, ऐश्वर्य, सौन्दर्य, माधुर्य, प्रेम आदि की अशेष खानि हैं- प्रेमास्पद बना लेने पर उनका निरन्तर चिन्तन हुए बिना कैसे रह सकता है ? भगवान के स्मरण का तार कभी न टूटे, इसके लिये हमें भगवान को प्रियतम बनाना चाहिये। जब तक जगत की वस्तु प्यारी लगती हैं, जगत के पदार्थों के लिये हम भगवान को भूलते हैं, तब तक हमारे मन भगवान ‘प्रियतम’ नहीं हैं।उन्हें प्रियतम बनाने के साधन हैं-उनके प्रभावको सुनना-जानना; उनकी दिव्य मधुर लीलाओें का निरन्तर श्रवण, मनन और गान करना; उनके परम पावन नाम का जप करना, उनके सर्वोपरि सर्वाधार दिव्य स्वरूप, गुण, धाम, ऐश्वर्य, माधुर्य, सौन्दर्य, कारुण्य, सख्य, वात्सल्य, स्वामित्व, प्रेम आदि महान् गुणों का बारम्बार चिन्तन करना और उनकी कृपा पर परम और अटल विश्वास रखना! |
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज