श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
विरह-सुखश्री सूरदास जी ने रोते-रोते गाया था-
यह सच है कि ऐसा विरही मिलन से वंच्चित नहीं रहता ! सच्ची बात तो यह है कि वह नित्यमिलन में ही इस विरह-सुखका अनुभव करता है। भगवान् उससे कभी अलग होते ही नहीं। फिर प्रेमी जनों का बड़ा विलक्षण भाव होता है। वे मिलने की अपेक्षा वियोग मै अधिक सुखानुभूति करते हैं मिलन तो एक ही देश में एक काल में होता है। मिलन में प्रियतम श्यामसुन्दर केवल बाहर ही दीखते हैं; परंतु वियोग में वे सर्वत्र, सदा तथा अंदर-बाहर सब में भरे तथा निस्संकोच मिलते-बोलते दीखते हैं-
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