श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीकृष्ण-लीलानुकरण हानिकारकआत्मेन्द्रियतृप्ति की इच्छा से रहित एकनिष्ठ प्रेम तो आत्माओं के आत्मा, हमारे आत्मा के भी आत्मा श्रीकृष्ण के प्रति ही हो सकता है। जो पर-स्त्री और पर-पुरुष इन्द्रियतृप्ति की इच्छा से- चाहे वह बहुत सूक्ष्म वासना के रूप में ही हो- प्रेम का स्वाँग सजते हैं, वे वस्तुतः अपना महान् अनिष्ट करते हैं। वासना को बढ़कर प्रबल रूप धारण करते देर नहीं लगती। आग में ईंधन डालने से जैसे आग बढ़ती है, वैसे ही भोग्य वस्तु की प्राप्ति से भोगतृष्णा बढ़ती है और उसके परिणाम में इस लोक और परलोक में प्राप्त होते हैं- निन्दा, भय, क्लेश, कष्ट और अनन्त नरक-यन्त्रणा। शास्त्र कहते हैं - अर्थात् ‘कोई पुरुष यदि अगम्या स्त्री में गमन करता है अथवा कोई स्त्री अगम्य पुरुष से गमन करती है (अगम्य वही है, जिससे विवाह न हुआ हो) तो उसके मरने पर यमदूत उनको मारते हुए ले जाते हैं और वहाँ जलती हुई लोहे की स्त्रीमूर्ति से पुरुष का और पुरुषमूर्ति से स्त्री का आलिंगन कराते हैं। इस नरक का नाम ‘तप्तसूर्मि’ है।’ इसके बाद जब स्थूलदेह में जन्म होता है, तब उन्हें कई जन्मों तक नाना प्रकार के भयानक रोगों से पीड़ित रहना पड़ता है। अतएव इस मायिक जगत् में श्रीकृष्ण की और गोपियों की दिव्य लीला का अनुकरण कदापि नहीं हो सकता, न ऐसा दुस्साहस किसी को कभी करना ही चाहिये। हाँ, जिनके अन्तःकरण परम विशुद्ध हो गये हैं, इस लोक और परलोक के भोगों की सारी वासना जिनके मन से मिट चुकी है, जो मुक्ति का भी तिरस्कार कर सकते हैं, ऐसे पुरुषों में यदि किन्हीं महापुरुष की कृपा से श्रीकृष्ण सेवा की लालसा जग उठे और भुक्ति-मुक्ति की सूक्ष्म वासना तक का सर्वथा अभाव होकर उन्हें शुद्ध प्रेमा-भक्ति प्राप्त हो, तब सम्भव है गोपियों की भाँति श्रीकृष्ण उन्हें उपपति के रूप में प्राप्त हो सकें। अतएव यदि गोपियों को आदर्श मानकर उनका अनुकरण करना हो तो वह परम पुरुष श्रीकृष्ण के लिये करना चाहिये, न कि हाड़-मांस से घृणित पुतले पर-पुरुष या पर-स्त्री के लिये। शरीर से तो अनुकरण कोई भी नहीं कर सकते। परंतु भाव से भी, जिनमें तनिक भी निजेन्द्रिय-तृप्ति की वासना है, जो पवित्र और परम वैराग्य की स्वच्छ भूमिका पर नहीं पहुँच गये हैं, वे पुरुष या स्त्री यदि श्रीगोपी-गोपीनाथ की लीलाओं का अनुकरण करना चाहेंगे तो उनकी वही दशा होगी, जो सुन्दर फूलों के हार के भरोसे अत्यन्त विषधर नाग को गले में पहनने वालों की होती है। पाश्चभौतिक देहधारी स्त्री-पुरुष को तो श्रीकृष्ण की लीला की तुलना अपने कार्यों से करनी ही नहीं चाहिये। |
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