श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
रासलीला-रहस्यश्रीकृष्ण-जैसे असाधारण धी-शक्ति सम्पन्न बालक, जिनके अनेकों गुण सद्गुण बाल्यकाल में ही प्रकट हो चुके थे, जिनक सम्मति, चातुर्य और शक्ति से बड़ी-बडी विपत्तियों से व्रजवासियों ने त्राण पाया था, उनके पति वहाँ की स्त्रियों, बालिकाओं और बच्चों का कितना स्नेह, कितना आदर रहा होगा - इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उनके सौन्दर्य, माधुर्य और ऐश्वर्य से आकृष्ट होकर गाँव की बालक-बालिकाएँ उनके साथ ही रहती थीं और श्रीकृष्ण भी अपनी मौलिक प्रतिभा से राग, ताल आदि नये-नये साधनों से उनका मनोरन्जन करते थे और उन्हें शिक्षा देते थे। ऐसे ही मनोरन्जन में से रासलीला भी एक थी, ऐसा समझना चाहिये। जो श्रीकृष्ण को केवल मनुष्य समझते हैं, उनकी दृष्टि में भी यह दोष की बात नहीं होनी चाहिये। वे उदारता और बुद्धिमानी के साथ भागवत में आये हुए ‘काम’, ‘रति’ आदि शब्दों का ठीक वैसा ही अर्थ समझें, जैसा उपनिषद् और गीता में इन शब्दों का अर्थ होता है। वास्तव में गोपियों के परम त्यागमय प्रेम का ही नामान्तर ‘काम’ है - ‘प्रमैव गोपारामाणां काम इत्यगमत् प्रथाम्।’ और भगवान श्रीकृष्ण का आत्मरमण अथवा उनकी दिव्य क्रीडा ही ‘रति’ है - ‘आत्मनि यो रममाणः’, ‘आत्मारामोऽप्यरीरमत्।’ इसीलिये इस प्रसंग में स्थान-स्थान पर उनके लिये विभु, परमेश्वर, लक्ष्मीपति, भगवान, योगेश्वरेश्वर, आतमाराम, मन्मथमन्मथ, अखिलदेहिनामन्तरात्मदृक् आदि पद आये हैं - जिससे किसी को कोई भ्रम न हो जाय। राजा परीक्षित ने अपने प्रश्नों में जो शंकाएँ की हैं, उनका उत्तर प्रश्नों के अनुरूप ही अध्याय29 के श्लोक 13 से 16 तक और अध्याय 33 के श्लोक 30 से 37 तक श्रीशुकदेवजी ने दिया है। उस उत्तर से शंकाएँ तो हट गयी हैं, परंतु भगवान की दिव्यलीला का रहस्य नहीं खुलने पाया; सम्भवतः उस रहस्य को गुप्त रखने के लिये ही 33 वें अध्याय में रासलीला-प्रसंग समाप्त कर गया। वस्तुतः इस लीला के गूढ़ रहस्य की प्राकृत जगत् में व्याख्या की भी नहीं जा सकती; क्योंकि यह इस जगत् की क्रीडा ही नहीं है। यह तो उस दिव्य आनन्दमय-रसमय राज्य की चमत्कारमयी लीला है, जिसके श्रवण और दर्शन के लिये परमहंस मुनिगण भी सदा उत्कण्ठित रहते हैं। कुछ लोग इस लीला प्रसंग को भागवत में क्षेपक मानते हैं, वे वास्तव में दुराग्रह करते हैं; क्योंकि प्राचीन-से-प्राचीन प्रतियों में भी यह प्रसंग मिलता है और थोड़ा विचार करके देखने से यह सर्वथा सुसंगत और निर्दोष सिद्ध होता है। भगवान श्रीकृष्ण कृपा करके ऐसी विमल बुद्धि दें, जिससे हम लोग इसका कुछ रहस्य समझने में समर्थ हों। |
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