श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
रासलीला-रहस्यइस पंचाध्यायी में वंशीध्वनि, गोपियों के अभिसार, श्रीकृष्ण के साथ उनकी बातचीत, दिव्य रमण, श्रीराधाजी के साथ अन्तर्धान, पुनः प्राकट्य, गोपियों के द्वारा दिये हुए वसनासन पर विराजना, गोपियों के कूट प्रश्न का उत्तर, रास, नृत्य, क्रीडा, जलकेलि और वन-विहार का वर्णन है-जो मानवी भाषा में होने पर भी वस्तुतः परम दिव्य है। यह बात पहले ही समझ लेनी चाहिये कि भगवान का शरीर जीव-शरीर की भाँति जड नहीं होता। जड की सत्ता केवल जीव की दृष्टि में होती है, भगवान की दृष्टि में नहीं। यह देह है और यह देही है, इस प्रकार का भेदभाव केवल प्रकृति के राज्य में होता है। अप्राकृत लोक में-जहाँ की प्रकृति भी चिन्मय है-सब कुछ चिन्मय ही होता है; वहाँ अचित् की प्रतीति तो केवल चिद्विलास अथवा भगवान की लीला की सिद्धि के लिये होता है। इसलिये स्थूलता में-या यों कहिये कि जडराज्य में रहने वाला मस्तिष्क जब भगवान की अप्राकृत लीलाओं के सम्बन्ध में विचार करने लगता है, तब वह अपनी पूर्व वासनाओं के अनुसार जडराज्य की धारणाओं, कल्पनाओं और क्रियाओं का ही आरोप उस दिव्य राज्य के विषय में भी करता है, इसलिये दिव्यलीला के रहस्य को समझने में असमर्थ हो जाता है। यह रास वस्तुतः परम उज्ज्वल रस का एक दिव्य प्रकाश है। जड जगत् की बात तो दूर रही, ज्ञानरूप या विज्ञानरूप जगत् में भी यह प्रकट नहीं होता। अधिक क्या, साक्षात चिन्मय तत्त्वों में भी इस परम दिव्य उज्ज्वल रस का लेशाभास नहीं देखा जाता। इस परम रस की स्फूर्ति तो परम भावमयी श्रीकृष्णप्रेमस्वरूपा गोपीजनों के मधुर हृदय में ही होता है। इस रासलीला के यथार्थ स्वरूप और परम माधुर्य का आस्वाद उन्हीं को मिलता है, दूसरे लोग तो इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। भगवान के समान ही गोपियाँ भी परमरसमयी और सच्चिदानन्दमयी ही हैं। साधना की दृष्टि से भी उन्होंने न केवल जड शरीर का ही त्याग कर दिया है, बल्कि सूक्ष्मशरीर से प्राप्त होने वाले स्वर्ग, कैवल्य से अनुभव होने वाले मोक्ष-और तो क्या, जडता की दृष्टि का ही त्याग कर दिया है। उनकी दृष्टि में केवल चिदानन्दस्वरूप श्रीकृष्ण हैं, उनके हृदय में श्रीकृष्ण को तृप्त करने वाला प्रेमामृत है। उनकी इस अलौकिक स्थिति में स्थूल शरीर, उसकी स्मृति और उसके सम्बन्ध से होने वाले अंग-संग की कल्पना किसी भी प्रकार नहीं की जा सकती। ऐसी कल्पना तो केवल देहात्मबुद्धि से जकड़े हुए जीवों की ही होती है। जिन्होंने गोपियों को पहचाना है, उन्होंने गोपियों की चरणधूलि का स्पर्श प्राप्त करके अपनी कृतकृत्यता चाही है। |
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