श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
चीरहरण-रहस्यश्रीकृष्ण आठ-नौ वर्ष के थे, उनमें कामोत्तेजना नहीं हो सकती और नग्न स्नान की कुप्रथा को नष्ट करने के लिये उन्होंने चीरहरण किया-यह उत्तर सम्भव होने पर भी श्रीमद्भागवत में आये हुए ‘काम’ और ‘रमण’ शब्दों से कई लोग भड़क उठते हैं। यह केवल शब्द की पकड़ है, जिस पर महात्मा लोग ध्यान नहीं देते। श्रुतियों में और गीता में भी अनेकों बार ‘काम’, ‘रमण’ और ‘रति’ आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है; परंतु वहाँ उनका अश्लील अर्थ नहीं होता। गीता में तो ‘धर्माविरुद्ध काम’ को परमात्मा का स्वरूप बतलाया गया है। दृष्टि भेद से श्रीकृष्ण की लीला भिन्न-भिन्न रूप में दीख पड़ती है। आध्यात्मवादी श्रीकृष्ण को आत्मा के रूप में देखते हैं और गोपियों को वृत्तियों के रूप में। वृत्तियों का आवरण नष्ट हो जाना ही ‘चीरहरण-लीला’ है और उनका आत्मा में रम जाना ही ‘रास’ है। इस दृष्टि से भी समस्त लीलाओं की संगति बैठ जाती है। भक्तों की दृष्टि से गोलोकाधिपति पूर्णतम पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण का यह सब नित्य लीला-विलास है और अनादि काल से अनन्त काल तक यह नित्य चलता रहता है। कभी-कभी भक्तों पर कृपा करके वे अपने नित्य धाम और नित्य सखा-सहचरियों के साथ लीलाधम में प्रकट होकर लीला करते हैं और भक्तों के स्मरण-चिन्तन तथा आनन्द-मंगल की सामग्री प्रकट करके पुनः अन्तर्धान हो जाते हैं। साधकों पर किस प्रकार कृपा करके भगवान उनके अन्तर्मल को और अनादि काल से संचित संस्कारपट को विशुद्ध कर देते हैं, यह बात भी इस चीरहरण-लीला से प्रकट होती है। भगवान की लीला रहस्यमयी है, उसका तत्त्व केवल भगवान ही जानते हैं और उनकी कृपा से उनकी लीला में प्रविष्ट भाग्यवान् भक्त कुछ-कुछ जानते हैं, यहाँ तो शास्त्रों और संतों की वाणी के आधार पर कुछ लिखने की धृष्टता की गयी है। |
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