श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
माखनचोरी का रहस्यभगवान की लीला पर विचर करते समय यह बात स्मरण रखनी चाहिये कि भगवान का लीलाधाम, भगवान के लीलापात्र और भगवान का लीला शरीर प्राकृत नहीं होता। भगवान में देह-देही का भेद नहीं है। महाभारत में आया है-
‘परमात्मा का शरीर भूत समुदाय से बना हुआ नहीं होता। जो मनुष्य श्रीकृष्ण परमात्मा के शरीर को भौतिक जानता-मानता है, उसका समस्त श्रौत-स्मार्त्त कर्मों से बहिष्कार कर देना चाहिये अर्थात् उसका किसी भी शास्त्रीय कर्म में अधिकार नहीं है। यहाँ तक कि उसका मुँह देखने पर भी सचैल (वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिये।’ श्रीमद्भागवत[1] में ब्रह्माजी ने भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए कहा है-
‘आपने मुझ पर कृपा करने के लिये ही यह स्वेच्छामय सच्चिदानन्द स्वरूप प्रकट किया है, यह पांचभौतिक कदापि नहीं है।’ इससे यह स्पष्ट है कि भगवान का सभी कुछ अप्राकृत होता है, उनके जन्म-कर्म की सभी लीलाएँ दिव्य होती हैं; परंतु यह व्रज की लीला, व्रज में निंकुजलीला और निकुंज में भी केवल रसमयी गोपियों के साथ होने वाली मधुर लीला तो दिव्याति दिव्य और सर्वगुह्यतम है। यह लीला सर्वसाधारण के सम्मुख प्रकट नहीं है, सर्वथा अन्तरंग-लीला है और इसमें प्रवेश का अधिकार केवल श्रीगोपीजनों को ही है। यदि भगवान के नित्य परमधाम में अभिन्नरूप से नित्य निवास करने वाली नित्यसिद्धा गोपियों की दृष्टि से न देखकर केवल साधनसिद्धा गोपियों की दृष्टि से देखा जाय तो भी उनकी तपस्या इतनी कठोर थी, उनकी लालसा इतनी अनन्य थी, उनका प्रेम इतना व्यापक था और उनकी लगन इनती सच्ची थी कि भक्तवांछाकल्पतरु प्रेम रसमय भगवान उनके इच्छानुसार उन्हें सुख पहुँचाने के लिये माखन चोरी की लीला करके उनकी अभीष्ट पूजा ग्रहण करें, चीर हरण करके उनका रहा-सहा व्यवधान का परदा उठा दें और रासलीला करके उनको दिव्य सुख पहुँचायें तो कोई बड़ी बात नहीं है। भगवान की नित्यसिद्धा चिदानन्दमयी गोपियों के अतिरिक्त बहुत-सी ऐसी गोपियाँ और थीं, जो अपनी महान साधना के फलस्वरूप भगवान की मुक्तजन-वांछित सेवा करने के लिये गोपियों के रूप में अवतीर्ण हुई थीं। उनमें से कुछ पूर्वजन्म की देव कन्याएँ थीं, कुछ श्रुतियाँ थीं, कुछ तपस्वी ऋषि थे और कुछ अन्य भक्तजन। इनकी कथाएँ विभिन्न पुराणों में मिलती हैं। |
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