श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीयुगल-स्वरूप की उपासनावहाँ शरीर रूप से स्वयं भगवान ही हैं। गोपियाँ भी वे ही हैं-सब कुछ स्वयं श्रीकृष्ण ही है। यह कोई कल्पना नहीं है। रास सत्य है, रास नित्य है और रस चिन्मय है। वह है क्या-यह कौन कहे? कैसे कहे? जो भावुक हैं-जिनका इस भाव राज्य में प्रवेश है, वे ही इसका आनन्द जानते हैं; पर इस आनन्छ को मायिक वाणी कैसे व्यक्त कर सकेगी? जो उस पर-आनन्द में मग्न हैं, वे फिर इसके परे क्या है, इस ओर ताकते तक नहीं। यही तो वेदान्त शिरोमणि श्रीमधुसूदन स्वामी ने कहा है-
‘जिनके दोनों हाथ बाँसुरी से शोभा पा रहे हैं, श्रीअंगों की कान्ति नूतन मेघ के समान श्याम है, साँवले अंग पर पीताम्बर सुशोभित हो रहा है, लाल-लाल ओठ पके हुए बिम्ब फल की सुषमा छीने लेते हैं, सुन्दर मुख पूर्णिमा के चन्द्रमा को भी लज्जित कर रहा है और नेत्र प्रफुल्ल कमल के समान मनोहर प्रतीत होते हैं; उन भगवान श्रीकृष्ण के सिवा दूसरा कोई भी परम तत्त्व है- यह मैं नहीं जानता।’
‘यदि योगी लोग ध्यान के अभ्यास से वश में किये हुए मन के द्वारा किसी निगुर्ण और निष्क्रिय परम ज्योति का साक्षात्कार करते हैं तो करते रहें; हम तो चाहते हैं-यमुना के किनारे वह जो कोई अनिर्वचनीय साँवला-सलोना तेज दौड़ता फिरता है, वही हमारे नेत्रों में चिरकाल तक चमत्कार (विस्मयपूर्ण उल्लास) उत्पन्न करता रहे।’ |
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