श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
उपनिषद् में युगल-स्वरूपउपनिषद् के दिव्य-दृष्टिसम्पन्न ऋषियों ने जहाँ विश्व के चरम और परम तत्त्व एक, अद्वितीय, देश-काल-अवस्था-परिणाम से सर्वथा अनवच्छिन्न सच्चिदानन्द-स्वरूप को देखा, वहीं उन्होंने उस अद्वैत परब्रह्मम को उसकी अपनी ही विचित्र अचिन्त्य शक्ति के द्वारा अनन्त विचित्र रूपों में प्रकट भी देखा और यह भी देखा कि वही समस्त देशों, समस्त कालों, समस्त अवस्थाओं और समस्त परिणामों के अंदर छिपा हुआ अपने स्वतन्त्र सच्चिदानन्दमय स्वरूप की, अपनी नित्यसत्ता, चेतना और आनन्द की मनोहर झाँकी करा रहा है।
किसी भी दृश्य, ग्राह्य, कथन करनेयोग्य, चिन्तन करनेयोग्य और धारणा में लाने योग्य पदार्थ के साथ उसका कोई भी सम्बन्ध या सादृश्य नहीं है। इसी के साथ वहाँ, उसी क्षण उन्होंने उसी देश-कालातीत, अवस्था-परिणाम-शून्य, इन्द्रिय-मन-बुद्धि के अगोचर, शान्त, शिव, अनन्त, एकमात्र सत्तास्वरूप अक्षर परमात्मा को ही सर्वकाल में और समस्त देशों में नित्य विराजित देखा और कहा कि ‘धीर साधक पुरुष उस नित्य, पूर्ण, सर्वव्यापक, अत्यन्त सूक्ष्म, अविनाशी और समस्त भूतों के कारण परमात्मा को देखते हैं- |
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