श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
युगलतत्त्व की एकताइसी प्रकार अकेली पराशक्ति की भी उपासना नहीं हो सकती। जब शक्ति शक्तिमान में ही निवास करती है, तब शक्ति की उपासना से शक्तिमान की उपासना भी स्वतः ही हो जायगी। पुरुषरूप शक्तिमान की उपासना करने वाले स्वाभाविक ही शक्ति की उपासना करते हैं, चाहे अपनी जान में न करें। और इसी प्रकार शक्ति की उपासना करने वाले भी शक्त्याधार शक्तिमान की उपासना करते हैं। अतएव मुख्य या गौण भेद से किसी भी शक्तिमान या शक्ति की उपासना की जाय, यदि उसमें अनन्यभाव है तो एकमात्र सच्चिदानन्द-तत्त्व की उपासना है। तथापि पृथक्-पृथक् रूपों में तथा विभिन्न नामों से शक्ति की उपासना की जाती है। वैष्णवजन भगवती लक्ष्मी की, भगवती सीता की, भगवती राधा की उपासना करते ही हैं। शैव भगवती उमा-सती की-दुर्गा की उपासना करते हैं और इसी प्रकार शाक्त भी भगवान शिव तथा भैरव की उपासना करते हैं। विशेष-विशेष अवसरों पर भगवान स्वयं उपदेश दकेकर भगवती देवी की उपासना अपने भक्तों से करवाते हैं और भगवती स्वयं उपदेश देकर भगवान की उपासना करवाती हैं तथा इससे उन्हें बड़ी प्रसन्नता प्राप्त होती है। भगवान राम की उपासना से सीता को, भगवान श्रीकृष्ण की उपासना से राधा को, भगवान श्रीविष्णु की उपासना से लक्ष्मी को और भगवान श्रीसदाशिव की उपासना से पार्वती को एवं इसी प्रकार भगवती सीता की उपासना से श्रीराम को, भगवती राधा की उपासना से श्रीकृष्ण को, भगवती लक्ष्मी की उपासना से श्रीविष्णु को और पार्वती की उपासना से श्रीमहादेव को अनिर्वचनीय सुख की प्राप्ति होती है। उपासना में इष्ट का रूप एक होना चाहिये। यह परम आवश्यक है। तथापि उस की की प्रसन्नता-सम्पादन के लिये, या उसके आज्ञापालन के लिये अन्य रूप की उपासना करना भी कर्तव्य होता है। अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से भगवान शिव की तथा ‘एकानंशा’ शक्ति की उपासना की। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने भगवान शंकर की उपासना, भगवान श्री राम ने स्वयं शक्ति तथा शिव की उपासना की, श्रीशंकर ने भगवान विष्णु तथा राम की शक्ति की आराधना की, गोपों ने अम्बिका की पूजा की, गोपरमणियों ने कात्यायनी की पूजा की; यादवों ने दुर्गापूजन किया एवं श्रीसीताजी और श्रीरुक्मिणी जी ने अम्बिका पूजन किया। ये सब कथाएँ प्रसिद्ध हैं। शक्ति और शक्तिमान में अभेद मानते हुए ही जिनकी जिस रूप में, जिस नाम में, जिस तत्त्व-विशेष में रुचि हो, जिसका जो इष्ट हो, उसको उसी की उपासना उसी के अनुकूल पद्धति से करनी चाहिये। पर यह मानना चाहिये कि हमारे ही परम इष्ट की उपासना सभी लोग विभिन्न नाम-रूपों से करते हैं तथा हमारे ही परम इष्टदेव विभिन्न नाना रूपों को धारण किये हुए हैं। |
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