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श्री युगत-तत्त्व और उनसे प्रार्थना
- शक्ति प्राण है शक्तिमान का, शक्तिमान है शक्ति-प्राण।
- दोनों से दोनों की सत्ता है, अन्यथा उभय निष्प्राण।। 3।।
- नहीं कभी होता असंग, चिन्मात्र ब्रह्म से विश्व-विकास।
- पराशक्ति के समाश्रयण से ही होता सब भाँति प्रकाश।। 4।।
- कारण-रूप जगत् की है वह परमोत्कृष्ट पूर्ण पर-शक्ति।
- इसीलिये हरि-हर-ब्रह्मा सब देव कर रहे उनकी भक्ति।। 5।।
- जगकी बात अलग, उन तीनों का भी जो निज अस्तित्व।
- एकमात्र कारण है उसमें, नित परिपूर्ण शक्ति का तत्त्व।। 6।।
- शक्ति बिना शिव ‘शव’ हो जाते, विष्णु ‘अविष्णु’ रमा से हीन।
- हो अभाव यदि ब्रह्म-शक्ति का, विधि ‘अशक्त’ हो जाते दीन।। 7।।
- राधे बिना कृष्ण ‘आधे’ हैं, सीताहीन राम ‘अति दीन’।
- नहीं ‘देव’ हो कोई, वह यदि हो ‘देवत्व-शक्ति’ से हीन।। 8।।
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