श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
लीला-पुरुषोत्तम का प्राकट्यचन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में स्थित थे ही, आकाश के सभी ग्रह, नक्षत्र तारे शान्त और सौम्य हो गये। दसों दिशाएँ प्रसन्न हो उठीं। आकाशमें तारे जगमगाने लगे। पृथ्वी के बड़े-बड़े नगर, गाँव और छोटी बस्तियाँ तथा रत्नों की खाने मंगल की क्रीडाभूमि बन गयीं। नदियों का जल निर्मल हो गया। रात्रि के समय भी सरोवरों में कमल खिल उठे। वनों में वक्षों की पंक्तियाँ वर्ण-वर्ण के सुगन्धित सुमनों से लद गयीं। शुक-पिकादि पक्षी मधुर ध्वनि करने लगे और मधु-पान-मत्त भ्रमरों के गुन्जार से सारा अरण्य-प्रदेश मुखरित हो उठा। परम पवित्र शीतल-मन्द-सुगन्ध वायु अपने सुख-स्पर्श से सबको आनन्द देती हुई बहने लगी और द्विजों के हवनकुण्डों की जो अग्नियाँ कंस के अत्याचार से बुझ गयी थीं, वे अपनेआप प्रज्वलित हो उठीं। यह तो बाह्य प्रकृति ने अपना श्रृंगार किया। पर बाह्य जगत् का यह आनन्द अन्तर्जगत् में भी जा पहुँचा। असुरों के द्रोहपात्र साधुओं का चित्त सहसा प्रसन्नता से भर गया। अजन्मा भगवान जन्म-लीला के समय बिना ही बजाये स्वर्ग में देवताओं की दुन्दुभियाँ बज उठीं, जिससे सारा स्वर्ग निनादित और मुखरित हो गया। गन्धर्व, किंनर और सिद्ध-चारण अपने-आप ही सात्त्विक मधुर भगवत्-गुण-गीत गाने लगे। विद्याधरियाँ और अप्सराएँ अपने विलास-नृत्य को भूलकर भगवान के गुण-गान में मत्त गन्धर्व-किंनरों के गोविन्द-गुण-गान की विशुद्ध तालों में ताल मिला-मिलाकर परम मधुर नृत्यक करने लगीं। बड़े-बड़े देवता और मुनिगण अत्यन्त मुदित मन से धरा के सौभाग्य की सराहना करने लगे। समुद्र मन्द-मन्द गर्जन करने लगा, मानो अपनी कन्या लक्ष्मीजी के स्वामी का-अपने जामाता का स्वागत कर रहा है। और बादल भी नीलश्याम के शुभागमन के समय अपने नीलश्याम वर्ण को धन्य मानते हुए मृदु-मृदु गर्जना करके अपने सौभाग्य की गाथा गाने लगे। इसी समय देवरूपिणी देवकीजी के पुत्ररूप में भगवान का प्राकट्य हुआ। चारों भुजाओं में शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किये हुए, पीताम्बर फहराते हुए बालभगवान को देखकर वसुदेव-देवकी आनन्द में भर गये, पर साथ ही कंस का भय भी लगा। भगवान ने माता-पिता को भयभीत देखकर उनसे कहा कि ‘तुम मुझे गोकुल पहुँचा दो।’ भगवान तुरंत शिशुरूप हो गये। वसुदेवजी ने उन्हें गोद में लिया और चल दिये। असल में भगवान सर्वशक्तिमान् हैं, सब कुछ कर सकते हैं। पर जीवों का भी कुछ कर्तव्य होता है। उसी कर्तव्य को बतलाकर साधन-मार्ग पर चलाने के लिये भगवान लीला किया करते हैं। अस्तु, |
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