श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप-तत्त्व और महत्त्वविभिन्न श्रुतियों ने परात्पर परब्रह्म को पुरुषोत्तम, सबका आदि कारण, अखिल विश्व का तथा प्रकृति का भी नियामक, सृष्टि, स्थिति तथा प्रलय का आधार, सर्वज्ञ, सर्वमय, अजन्मा, अविनाशी, सर्वलोकमहेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वाधार, सबका आश्रय, सर्वात्मा, अनन्त, आनन्दस्वरूप, परिपूर्णतम, अद्वितीय, एक, परम, गूढ़, परमज्योतिःस्वरूप, सर्वशक्तिमान्, सर्वशक्त्याधार आदि रूपों में वर्णन किया है। भगवान श्रीकृष्ण के लिये भी महाभारत, श्रीमद्भागवत,, महाभारतान्तर्गत भगवद्गीता तथा विभिन्न पुराण शास्त्रों में इसी प्रकार के अनन्त विशेषण प्रयुक्त हुए हैं। भगवान शिव, ब्रह्मा, नारद, सनकादि मुनि, व्यासदेव आदि महर्षि, इच्छामृत्यु तथा ज्ञान-विज्ञान-समुद्र भीष्मपितामह आदि असंख्य महानुभावों ने भगवान श्रीकृष्ण के पूर्ण-पुरुषोत्तम होने का वर्णन करते हुए उनकी आराधना-पूजा और स्तुति को जीवन का परम सौभाग्य माना है। यहाँ स्थायीपुलाक-न्याय से कुछ थोड़े-से वचन उद्धृत किये जाते हैं- स्वयं भगवान के वाक्य है - ‘मैं क्षर (नाशवान् जडवर्ग-क्षेत्र) से सर्वथा अतीत हूँ और अविनाशी अक्षर-जीवात्मा से भी उत्तम हूँ। इसलिये मैं लोक में और वेद में भी पुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध हूँ।’[1] ‘मैं समस्त जगत् का प्रभव और प्रलय हूँ (सबका आदि कारण हूँ)।’[2] ‘मेरे अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। यह सम्पूर्ण जगत् सूत्र में (सूत्र के) मणियों की भाँति मुझमें गुँथा हुआ है।’[3] ‘अर्जुन! तुम समस्त भूतों का सनातन बीज मुझको ही जानो।’[4] ‘मैं सबकी उत्पत्ति का कारण हूँ और मुझमें ही समस्त जगत् की चेष्टा होती है।’[5] ‘पूर्व में बीते हुए, वर्तमान में स्थित और भविष्य में होने वाले समस्त भूतों को मैं जानता हूँ; परंतु मुझको कोई भी नहीं जानता।’[6] ‘मैं ही सबकी गति, सबका भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, समस्त शुभाशुभ को देने वाला, सबका निवास स्थान, सबको शरण देने वाला, सबका सुहृद्, सबके उत्पत्ति-प्रलय में कारण, सबकी स्थिति का आधार, निधान और अविनाशी बीज (आदि कारण) हूँ।’[7] |
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क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ यस्मात् क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः।
अतोऽस्मि लोके वेद च प्रथितः पुरुषोत्तमः।।
(गीता 15। 18) - ↑ अहं कृत्स्त्रस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्त्था।
(गीता 7। 6) - ↑ मतः परतरं नान्यत् किंचिदस्ति धनंजय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।
(गीता 7। 7) - ↑ बीजं मां सर्वभूतानां पार्थ सनातनम्।
(गीता 7। 10) - ↑ अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते।।
(गीता 10। 8) - ↑ वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन।
भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन।।
(गीता 7। 26) - ↑ गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्।
प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्।।
(गीता 9। 18)
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