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- भगवान् के दिव्य मंगलमय स्वरूप का दर्शन किसी को होना, न होना-यह भगवान् की इच्छा पर निर्भर है।
- नित्यसिद्धा वात्सल्य-प्रेमकी प्रतिमूर्ति हैं-यशोदा मैया। यशोदा मैया नित्यजननी हैं श्रीकृष्ण की और श्रीकृष्ण नित्यपुत्र हैं यशोदा के। यशोदा मैया वात्सल्य प्रेम की ही घनीभूत मूर्ति हैं; उनमें और चीज है ही नहीं।
प्रश्न- श्रीकृष्ण को पुत्र रूप में प्यार करना तो यशोदा का अज्ञान है। इस प्रेम से जब ज्ञान प्राप्त होगा, तभी तो उन्हें भगवत्तत्त्व की प्राप्ति होगी न?
उत्तर- जो ज्ञान भगवान् को अलग रखे, जो ज्ञान भगवान् को अगोचर बताकर उन्हें न देखने दे, जो ज्ञान भगवान् को न सुनने दे, न स्पर्श करने दे, वह ज्ञान अच्छा कि यशोदा का यह अज्ञान अच्छा, जिसने भगवान् को प्राकृत बालक की भाँति पकड़ रखा है? जगत् भगवान् के पीछे चलता है, पर भगवान् यशोदा मैया के पीछे चलते हैं।
भगवान् को पूर्ण रूप से अनुभव करना शुद्ध प्रेमी(रागात्मक) भक्तों के लिये ही सम्भव है।
- भगवान श्रीकृष्ण अतर्क्य हैं; उनके स्वरूप का, ऐश्वर्य का, माधुर्य का तर्क से अनुमान नहीं हो सकता। तर्क के लिये किसी दृष्टान्त की आवश्यकता होती है, पर भगवान् के लिये कोई दृष्टान्त लागू नहीं होता। भगवान् ऐश्वर्य-माधुर्यमय स्वरूप भगवान् के लिये ही सम्भव है; अतएव दृष्टान्तविहीन-जिनके लिये कोई दृष्टान्त सम्भव ही नहीं- के विषय में तर्क आदि करने की सम्भावना ही नहीं है।
- श्रीकृष्ण का प्रत्यक्ष दर्शन हो और उनका माधुर्यभाव ठीक समझ में आ जाय, इसका सरल और मोघ उपाय है-सब ओर से ममता, आसक्ति हटाकर सर्वथा श्रीराधाजी के चरणों में आत्मा-सर्मपण। श्रीराधा की कृपा से ही श्रीकृष्ण के माधुर्य-रस का समास्वादन हो सकता है।
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