श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
बस, उस मदनमोहन श्यामसुन्दर के सौन्दर्य-माधुरी की लालसा हृदय में जगाइये और कृतार्थ हो जाइये। काम-क्रोध-लोभ-अभिमानादि जितने भी दुगुर्ण हैं, छूटने बड़े कठिन हैं और इन्हें छोड़ने के फेर में पड़कर जीवन गँवाने की आवश्यकता भी नहीं है। इन सबके विषय को बदल दीजिये। देवर्षि नारदजी ने कहा है- जब सब कुछ उन्हें सौंप दिया, तब फिर काम-क्रोधादि किसको देने जायँ? असल में जैसे गंगाजी के निर्मल प्रवाह में पड़कर गंदे नाले का पानी भी गंगाजल हो जाता है, वैसे ही काम-क्रोधादि दुर्गुण भी भगवान् से सम्बन्धित होकर, ब्रह्म-संस्पर्श पाकर भक्तिरूप या स्वंय भगवत्-स्वरूप, अतएव परम उपादेय बन जाते हैं। इसीलिए भक्तगण मुक्ति का तिरस्कार करके जन्म-जन्म में नित्य दासत्त्व की कामना करते हैं। इसी से प्रेमीजन प्राणवल्लभ प्रियतम श्यामसुन्दर पर प्रेमकोप तथा मान किया करते हैं और इसी से भक्तों का भक्ति-लोभ कभी मिटता ही नहीं। ये काम-क्रोध-लोभादि फिर भक्त के जीवनोपयोगी मधुर साधन बन जाते हैं। इनको वह कभी छोड़ना नहीं चाहता। यह भी एक मधुर और दिव्य कला है, जो सीखने योग्य है। |
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