श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
मैं श्रीगोपीजनों के साथ की हुई भगवान् श्रीकृष्ण की लीलाओं को सर्वथा सत्य और परम पवित्र मानता हूँ। मेरी समझ से उनमें जरा भी दोष नहीं है। वह तो साधन के ऊँचे से ऊँचे स्तर की परम पवित्र दिव्य अनुभूति है, जो परम दुर्लभ अत्यन्त कठिन गोपीरति की साधना सिद्ध परम विरक्त, एकान्त भगवद्-रसिक महापुरुषों को उपलब्ध होती है। श्रीराधारानी का नाम अवश्य ही श्रीमद्भागवत में नहीं है। इससे यह कहने का साहस नहीं करना चाहिये कि श्रीराधारानी की ‘कहानी’ कल्पित है। वह ‘कहानी’ नहीं, सत्य सत्य है। मैं श्रीगोपीजनों के साथ की हुई भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को सर्वथा सत्य और परम पवित्र मानता हूँ। मेरी समझ से उनमें व्यभिचार का जरा भी दोष नहीं है। वह तो साधन के ऊँचे-से-ऊँचे स्तर की परम पवित्र दिव्य अनुभूति है, जो परम दुर्लभ अत्यन्त कठिन गोपीरति की साधना में सिद्ध परम विरक्त, एकान्त भगवद्-रसिक महापुरुषों को ही उपलब्ध होती है। श्रीमद्भागवत में नाम नहीं है तो कहीं विरोध भी नहीं है। उसमें तो किसी भी गोपी का नाम नहीं है। अत्यन्त प्राचीन पद्यपुराण में, ब्रह्मवैवर्त में तथा गर्गसंहितादि सम्मान्य ग्रन्थों में उनकी लीला लिखी है और इससे भी बढ़कर उन महात्मा पुरुषों की अनुभूति प्रमाण है, जिन्होंने श्रीराधारानी का और उनकी कृपा का प्रत्यक्ष किया है। कोई न माने तो उस पर न तो कोई जोर है न आग्रह है। परंतु किसी के मानने-न-मानने से सत्य का विनाश नहीं हो सकता। श्रीराधारानी का श्रीकृष्ण के साथ विवाह हुआ था या नहीं-इस खोज की आवश्यकता नहीं है, यद्यपि इसका भी वर्णन मिलता है। मेरा तो कहना यह है कि यदि केवल स्थूल दृष्टि से श्रीकृष्ण को साधारण मानव मानकर विचार करते हैं, तब तो श्रीकृष्ण जिस समय वृन्दावन छोड़कर मथुरा चले गये थे, उस समय उनकी उम्र 11 वर्ष की थी। रासलीलादि तो इससे भी बहुत पहले की घटनाएँ हैं। इतनी छोटी अवस्था में कामक्रीडा हो नहीं सकती। और यदि उन्हें सर्वशक्तिमान्, सर्वान्तर्यामी, सबके एकमात्र आत्मा, सर्वलोकमहेश्वर, सच्चिदानन्दघन स्वयं भगवान् मानते हैं, तब श्रीराधारानी बाहर से कोई भी क्यों न हों, वे साक्षात् भगवती हैं, भगवान् श्रीकृष्ण की ह्लादिनी शक्ति हैं, उनके आनन्दस्वरूप का मूर्तरूप हैं, उनकी स्वरूपा शक्ति हैं। वे उनसे कदापि अलग नहीं है। आनन्द और प्रेम की अति दिव्य लीला में उनका-एक ही रूप का दो भावों में दिव्य नित्य प्रकाश है। श्रीराधारानी महाभावरूपा हैं और भगवान् श्रीकृष्ण परम प्रेमस्वरूप हैं। प्रेम का स्वरूप है प्रेमास्पद के सुख से सुखी होना। जहाँ निजेन्द्रियतृप्ति की वासना है, वहाँ तो प्रेम ही नहीं; वहाँ तो कलुषित काम है। भगवान् श्रीकृष्ण श्रीमती राधारानी के प्रेमास्पद हैं और श्रीराधारानी श्रीकृष्ण की प्रेमास्पदा हैं। |
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