श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
कुछ महानुभाव ऐसा मानते हैं कि लीला में अवतीर्ण भगवान श्रीकृष्ण का त्रिविध प्रकाश है- कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण पूर्ण सत और ज्ञानी शक्तिप्रधान हैं, द्वारका और मथुरा में पूर्णतर चित और क्रिया शक्ति प्रधान हैं एवं श्रीवृन्दावन में श्रीकृष्ण पूर्णतम आनन्द और इच्छा शक्ति प्रधान हैं। कुछ लोग महाभारत और श्रीमद्भागवत के श्रीकृष्ण को दो तक मानते हैं। यह सब उनकी अपनी भावना है। ‘जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी।।’ वस्तुतः परिपूर्णतम भगवान एक ही हैं, उनका अनन्त लीला विलास है और लीलानुसार उनका स्वरूप-वैचित्र्य है। वस्तु तत्त्व एक ही है। जिस किसी भी भाव से कोई उन्हें देखे- अपनी-अपनी दृष्टि के अनुसार उनके दर्शन करे, सब करते एक ही भगवान के हैं। उनमें किसी को भी छोटा-बड़ा न मान कर अत्यन्त प्रेम-भक्ति के साथ अपने इष्ट-स्वरूप की सेवा में ही लगे रहना चाहिए[1]। अस्तु, आज वही महान मंगलमय दिवस है, जिस दिन स्वयं भगवान का इस धरा धाम पर प्राकट्य हुआ था। हम धन्य हैं जो आज इस महामहोत्सव में सम्मिलित होने का सौभाग्य प्राप्त कर मानव-जीवन को सफल बना रहें हैं। भगवान प्रकट हुए मथुरा के कंस-कारागार- यद्यपि कुछ भक्त उनका गोकुल में प्रकट होना भी मानते हैं। जो कुछ भी हो, उनके प्राकट्य का उत्सव मनाने का सौभाग्य मिला नन्द-यशोदा को और व्रजवासियों को ही। अतः हम भी उन्हीं के साथ उत्सव में सम्मिलित होकर, ग्वाल-बाल तथा नन्दबाबा के साथ मिलकर नाचें-गायें-
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- ↑ एक सज्जन पूछते हैं कि क्या भगवान श्रीराम भगवान श्रीकृष्ण से किसी प्रकार न्यून हैं? इसका उत्तर यह है कि भगवान में न्यूनता की कल्पना करना ही अपराध है। वे दोनों सर्वथा एक ही हैं। लीला में एक मर्यादापुरुषोत्तम, दूसरे लीला-पुरुषोत्तम। दोनों ही षडैश्वर्यपूर्ण भगवान हैं। जैसे श्रीमद्भागवत भगवान श्रीकृष्ण के लिये ‘कृष्णस्तु भगवान स्वयम्’ आया है, वैसे ही महारामायण में भगवान श्रीराम के लिये ‘रामस्तु भगवान स्वयम’ आया है। अतएव इनमें छोटे-बड़े कल्पना नहीं करनी चाहिये।
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