श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
आज के ही दिन असुरों के अत्याचारों से उत्पीड़ित, कामना, वासना, दुःख, दैन्य और दारिद्र्य आदि के तीव्र ताड़न से संत्रस्त तथा क्षत-विक्षत, बहिर्मुखता एंव जडवाद से जर्जरित और प्रेमरस-सुधा-धारा से रहित सर्वथा शुष्क जगत में अखिलरसामृतसिन्धु, षडैश्वर्य सम्पूर्ण सर्वलोक महेश्वर स्वयं भगवान का आविर्भाव हुआ था। भगवान के अवतार में क्या हेतु होता है, इसे तो भगवान ही जानते हैं; पर जान पड़ता हैं कि इसमें प्रधान हेतु है भगवान की अपनी घनीभूत परमानन्द-रस-रूप लीला विग्रह को प्रकट करने की मंगलमयी इच्छा। वैसे, साधु जनों का परित्राण, दुष्टों के विनाश के द्वारा भूमि का भार-हरण और धर्म संरक्षण या धर्म संस्थापन के मंगलमय कार्य भी श्रीभगवान के अवतीर्ण होने में कारण बतलाये गये हैं। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने ही गीता, चतुर्थ अध्याय के 8 वें श्लोक में कहा है-
‘साधु पुरुषों के परित्राण, दुष्टों के विनाश और धर्म संस्थापन के लिये मैं युग-युग में उत्तम रीति से प्रकट होता हूँ (सम्भवामि)।’ पर केवल यही कारण नहीं है-भगवान ने ही इससे पहले छठे और सातवें श्लोक में अन्य कारणों का भी स्पष्ट संकेत किया है- |
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