|
12. सम्मान-पूजा-प्रतिष्ठा को विष के समान समझकर उनसे सदा बचना। बुरा कार्य न करना, पर अपमान को अमृत के समान मानकर उसका आदर करना।
उपर्युक्त बारह साधनों को श्रद्धा-प्रेमपूर्वक अपनाने का प्रयत्न करने पर श्रीराधा-माधव की सहज कृपा से हमारा जीवन उनके प्रेम-मार्ग पर चलने लायक बन सकेगा, ऐसी आशा है।आज श्रीराधा जन्माष्टमी का महोत्सव मनाने, श्रीराधा माधव का पवित्र स्मरण करने तथा उनके सम्बन्ध में कुछ चर्चा करने का सौभाग्य श्रीराधा माधव की कृपा से ही मिला है। उनकी बार-बार जय-जयकार करें।
प्रार्थना
- राधा-माधव-पद-कमल बंदौ बारंबार।
- मिल्यौ अहैतुक कृपा तैं यह अवसर सुभ-सार।।
- दीन-हीन अति, मलिन-मति, बिषयनि कौ नित दास।
- करौं बिनय केहि मुख, अधम मैं, भर मन उल्लास।।
- दीनबंधु तुम सहज दोउ, कारन-रहित कृपाल।
- आरतिहर अपुनौ बिरूद लखि मोय करौ निहाल।।
- हरौ सकल बाधा कठिन, करौ आपुने जोग।
- पद-रज-सेवा कौ मिलै मोय सुखद संजोग।।
- प्रेम-भिखारी परद्यौ मैं आय तिहारे द्वार।
- करौ दान निज-प्रेम सुचि, बरद जुगल-सरकार।।
- श्रीराधा-माधव-जुगल हरन सकल दुखभार।
- सब मिलि बोलौ प्रेम तैं तिनकी जै-जै-कार।।
बोलो श्रीराधा माधव की जय! जय!!
|
|