श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
वस्तुतः ये तीन पृथक-पृथक भिन्न तत्त्व नहीं हैं। एक ही सत्य तीन रूपों में नित्य प्रकाशित है। इन तीनों का तथा इनसे संयुक्त समस्त तत्त्वों का जो एक समग्र स्वरूप है, वही परात्पर परमतत्त्व स्वयं-भगवान हैं। वे भगवान सच्चिन्मय ब्रह्म (निराकार-निर्गुण ब्रह्म) की, अविनाशी अमृत (नित्य-तत्त्वज्ञानरूप मुक्ति) की, शाश्वत नित्यधर्म (भक्तिरूपी परमधर्म) की और ऐकान्तिक सुख (प्रेमरसमय परमानन्द) की प्रतिष्ठा या आश्रय हैं-
महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत के समग्र-भगवान श्रीकृष्ण इन्हीं परात्पर परतत्त्व स्वयं-भगवान के रूप में ज्ञानियों के उपास्य निर्विशेष अखण्ड चित्सत्तामात्र ब्रह्म को अपनी महिमा बता रहे हैं- ‘मेरी महिमा ही परब्रह्म-शब्द से कही जाती है।’ पद्मपुराण में भगवान शंकर श्रीवृन्दावनविहारी की वन्दना करते हैं-
‘जिनके नखचन्द्र की ज्योतिरूप ब्रह्म का ब्रह्मादि देवगण भी ध्यान करते हैं, उन त्रिगुणातीत वृन्दावनेश्वर की मैं वन्दना करता हूँ।’
|
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज