श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधाका स्वरूप और महत्त्वश्रीराधाजी का मंगलमय प्राकट्य उनके ननिहाल में कालिन्दीतट पर स्थित रावल-ग्राम में हुआ था। प्राकट्य के समय अकस्मात प्रसूतिगृह में एक ऐसी दिव्य प्रखर ज्योति फैल गयी कि जिसके तेज से अपने-आप ही सबकी आँखें मुँद गयीं। इसी समय ऐसा भान हुआ मानो देवी कीर्तिदा के प्रसव हुआ है। पर प्रसव में केवल हवा निकली और जब कीर्तिदा तथा समीप में स्थित श्रीगोपांगनाओं के नेत्र खुले, तब उनको दिखायी दिया कि वायु में कम्पन-सा हो रहा है और उसमें सहसा एक परम सुन्दर दिव्य लावण्यमयी बालिका प्रकट हो गयी है। कीर्तिदा ने यही समझा कि इस परम दिव्य ज्योतिर्मयी कन्या का जन्म मेरे ही उदर से हुआ है। उन्होंने मन-ही-मन दो लाख गो-दान का संकल्प किया। अन्तरिक्ष से सुर-समुदाय ने इतने सुगन्धित सुन्दर सुकोमल सुर-सुमनों की वर्षा की कि चारों ओर ढेर-के-ढेर वे पुष्प स्वयं ही सुन्दर ढंग से सुसज्जित हो गये। सब दिशाओं में एक अभूतपूर्व आनन्द की धारा बहने लगी। स्वयं भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के प्राकट्य के समय जो आनन्द-रस की धारा बही थी, आज उनकी आनन्द-रस-भावमयी इन हृदयेश्वरी के प्राकट्य के समय वही रस मानो समुद्र बनकर उमड़ चला और सभी दिशाएँ उस आनन्द-रस से आप्लावित हो गयीं।
फिर, सभी दिशाएँ जयघ्वनि से गूँज उठी, श्रृषिवर करभाजन, श्रृंगी, गर्ग और मुनि दुर्वासा पहले से ही पधारे हुए थे। उन्होंने बालिका के मंगल ग्रह-नक्षत्रों का शोध किया और कुण्डली बनायी। सम्पूर्ण व्रज-मण्डल में यह शुभ समाचार फैल गया। |
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