श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
परम और चरम त्याग का, सर्वसमर्पणमय उज्ज्वलतम प्रेम का, स्व-सुख-वान्छा-विरहित प्रियतम-सुखेच्छामय स्वभाव का और अहं की चिन्ता, मंगलकामना ही नहीं, अहं की स्मृति से भी शून्य प्रियतम-स्मृतिमय जीवन का कैसा स्वरूप होता है- श्रीराधा ने अपने प्रत्यक्ष जीवन से इसका एक नित्य-चेतन क्रियाशील मूर्तिमान उदाहरण उपस्थित करके जगत के इतिहास में एक अभूत पूर्व दान किया है। इस महान दान का मंगलमूल आज का ही मंगलमय दिन है। इसलिये यह दिन धन्य है। यह भारतवर्ष धन्य है और इसके निवासी हम लोग भी धन्य हैं, जो आज श्रीराधा के प्राकट्य-महोत्सव के उपलक्ष में उनका मंगलमय स्मरण कर रहे हैं। ये श्रीराधाजी क्या हैं, इसका वास्तविक उत्तर तो वे स्वयं या उनके अभिन्न स्वरूप परमात्मा श्रीकृष्ण ही दे सकते हैं। हम लोग तो शास्त्रों, महात्माओं, संतों, साधकों और इस रस-सागर में अवगाहन करने वाले अनुभवी प्रेमीजनों के वचनों के आधार पर ही श्रीराधारानी का किंचित-सा स्मरण करके धन्य हो जाते हैं। श्रीराधारानी के प्रसिद्ध सोलह नाम पुराणों में आते हैं। यहाँ हम उन नामों का जयघोष करें तथा उनका अर्थ समझने का किंचित प्रयास करें।
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