श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा के स्वरूप गुण अचिन्त्यानन्त हैं। उनका वर्णन तो दूर रहा, चिन्तन भी असम्भव है। यह तो केवल एक बाह्य संकेत मात्र है और यह भी उनकी कृपा का ही सुन्दर परिणाम है। पर वस्तुतः जितने भी महान गुण, भावों में अवान्तर भेद तथा भावों के परमोच्च स्तर आदि हैं, जिनका किसी प्रकार भी वाणी के द्वारा वर्णन अथवा चित्त के द्वारा चिन्तन हुआ है, हो सकता है, नित्याचिन्त्य-भावमयी श्रीराधा उन सभी भावों से अतीत निज महिमा में नित्य स्थित हैं। ये सब भाव आदि शाखाचन्द्र-न्याय से उनका संकेत मात्र करते हैं।
‘जिनते भी ये प्रेमराज्य के एक-से-एक उच्च, विलक्षण और उदार भाव हैं, वे सभी अत्यन्त आभ्यन्तरिक होने पर भी बाह्य रस पूर्ण व्यवहार ही हैं। निश्चय ही वे परम आदर्श हैं, पवित्रतम हैं और महान हैं। उन भावों के द्वारा प्रेमास्पद श्रीभगवान प्रियतम के रूप में प्राप्त हो सकते हैं; परंतु श्रीराधाजी स्वरूपतः उन भावों में कभी किंचित भी बँधी नहीं हैं। एक श्यामसुन्दर के अतिरिक्त तत्त्वतः श्रीराधा में और कुछ है ही नहीं। श्रीराधा नित्य श्रीश्यामसुन्दर हैं और श्रीश्यामसुन्दर राधा हैं, उनमें अन्य किसी भी तत्त्व का नित्य अभाव है।’ ‘स्वयं भगवान’ श्रीकृष्ण की स्वरूप भूता नित्यशक्ति, नित्य दिव्य रासेश्वरी, नित्य निकुन्जेश्वरी, श्रीकृष्णप्राणा, श्रीकृष्ण-आत्मा और साक्षात श्रीकृष्ण स्वरूपा इन्हीं श्रीराधाजी के मधुर मनोहर मंगलमय दिव्य अवतार का आज परम पुण्य दिवस है। |
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