श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधाजी कौन थी?
‘जो नराधम हम दोनों में (श्रीकृष्ण और श्रीराधा में) भेद-बुद्धि करता है, वह जब तक चन्द्र-सूर्य रहते हैं, तब तक के लिये कालसूत्र नामक नरक में रहता है। उसके पहले के सात और पीछे के सात पुरुष अधोगामी होते हैं और उसका कोटिजन्मार्जित पुण्य निश्चय ही नष्ट हो जाता है। जो नराधम अज्ञानवश हम लोगों की निन्दा करते हैं, वे पापात्मा भी चन्द्र-सूर्य की स्थिति काल तक घोर नरक भोगते हैं।’ अब रही गोपियों के प्रेम के शुद्ध होने की बात। इस पर रासपञ्चाध्यायी का यह श्लोकार्द्ध स्मरण रखना चाहिये— ‘छोटे बालक जैसे अपने प्रतिबिम्ब के साथ खेला करते हैं, वैसे ही रमेश भगवान् ने भी व्रज सुन्दरियों के साथ क्रीड़ा की।’ लीला-रसमय आनन्दकन्द भगवान् स्वभाव से प्रेमवश हैं। अतएव उन्होंने प्रेमभाव से ही अपने आनन्द स्वरूपा शक्ति द्वारा अपने ही प्रतिबिम्ब रूप प्रेमस्वरूपा महाभागा गोपियों के साथ क्रीड़ा की। उनका तो यह आत्मरमण था और गोपियों का इसमें श्रीकृष्णसुख ही एक मात्र उद्देश्य था। |
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क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ ब्रह्मवैवर्तपुराण, कृ० 15। 67-70
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