श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
वे कहते हैं-
‘मैं चिन्मय पर तत्त्व हूँ, मैं पूर्ण ज्ञानस्वरूप हूँ; परंतु मैं प्रियतमा श्रीराधा के महत्त्व का पता नहीं पा सका। मेरा मन निरन्तर बरबस राधा में लगा रहता है। राधा ने मेरे चित्त को चुरा लिया है। अतएव मैं सदा राधा के प्रेम में विह्वल रहता हूँ। मैं दिन-रात राधा के अगाध प्रेम-समुद्र में पड़ा हुआ उसकी मधुर-मधुर विविध लहरियों के साथ नित्य प्रमुदित मन से नाचता रहता हूँ। मेरे मन में सदा यह लोभ लगा रहता है कि मैं भी राधा के सदृश प्रेम प्राप्त करूँ। राधा का वह प्रेम निर्मल स्वर्ण की भाँति दोषरहित, दुर्लभ और परम पवित्र है। राधा जिस प्रेम का आस्वादन करके जो सुख प्राप्त करती है, उस सुख का विस्तार मेरे सुख से करोड़ों गुना अधिक है।’ |
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज