श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधाजी स्वरूपतः श्रीकृष्ण-प्रेम की एक घनीभूत नित्य चेतन स्थिति हैं। ह्लादिनी का सार प्रेम है, प्रेम का सार मादनाख्य महाभाव है और श्रीराधिका स्वयं मादनाख्य महाभाव स्वरूपा हैं। वे प्रत्यक्ष मूर्तिमती ह्लादिनी शक्ति हैं, पवित्रतम प्रेम की एक मात्र आत्म स्वरूपा अधिष्ठात्री देवी हैं। श्रीकृष्णसुखैकतात्पर्यमयी पवित्रतम नित्य सेवा के द्वारा श्रीकृष्ण का आनन्द-विधान ही जिनका एक मात्र कार्य है, वे श्रीराधा श्रीकृष्णकान्तागण में सर्वश्रेष्ठ तथा सबकी परमाधाररूपिणी हैं। श्रीराधा पूर्ण शक्ति है। श्रीकृष्ण पूर्ण शक्तिमान हैं। शक्ति और शक्तिमान में भेद तथा अभेद दोनों ही माने जाते हैं। अभेद रूप में श्रीराधा अनादि, अनन्त, नित्य एक हैं और वे ही लीला रसस्वादन के लिये अनादि काल से नित्य दो स्वरूपों में विराजित हैं। श्रीराधा और श्रीकृष्ण दोनों ही परम प्रेमस्वरूप होने पर भी लीला रस की विशेष पुष्टि के लिये श्रीराधा में ही प्रेम की पूर्णतम अभिव्यक्ति है। इसी से श्रीकृष्ण स्वयं दिव्य-रस रूप, अचिन्त्यानन्त-रस-सदन, अखिलरसामृतमूर्ति होने पर भी श्रीराधिका के प्रेम में उन्मत्त रहते हैं। |
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