श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
परम प्रियतम श्रीकृष्ण के प्रति होने वाले मधुर प्रेम को ‘मधुरा रति’ कहते हैं। यह मधुरा रति तीन प्रकार की होती है - ‘साधारणी’, ‘समञ्जसा’ और ‘समर्था’। साधारण रति में स्व-सुख-वासना रूपा सम्भोगेच्छा रहती है, पर उसी के साथ कुछ श्रीकृष्ण-सुखेच्छा का भी उदय हो जाता है, जैसा कुब्जा में हुआ। इसीलिये इसे भी ‘रति’ कहा गया है। अन्यथा यह तो अग्राह्य ही है। समञ्जसा रति में श्रीकृष्ण-सुखेच्छा ही रहती है, परंतु कभी-कभी श्रीलक्ष्मी-रुक्मिणी आदि के सदृश पत्रीत्व-भाव के कारण स्वसुख-वासना रूपा सम्भोगेच्छा का उदय हो जाता है, यद्यपि वह होता है बहुत ही सामान्य तथा अत्यन्त गौण रूप में ही और वह भी फलतः श्रीकृष्ण सुख के लिये ही। |
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