श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
5- मृदुता-शीतलता-सुशीलता-गुण-गण-आधारा राधा। श्रीकृष्ण- कान्ताओं के तीन प्रकार है - लक्ष्मीगण (वैकुण्ठादि में भगवत स्वरूपों की कान्ताएँ), महिषीगण (द्वारकापुरी की रुक्मिणी, सत्यभामा आदि पटरानियाँ) व्रजांगनाएँ। इन श्रीकृष्ण के प्रेयसी कान्ताओं में श्रीराधा सर्वशिरोमणि है और इन सबकी मूल शक्ति एवं सबके मस्तकों के मुकुट-स्वरूप स्वयं श्रीकृष्ण की मणि-स्वरूपा हैं। इन श्रीराधा के चित्त, इन्द्रिय, शरीर, बुद्धि और अहंकार- सभी ह्लादिनी के साररूप श्रीकृष्ण प्रेम के द्वारा ही गठित हैं, प्राकृत रक्त-मांसादि के द्वारा नहीं। ये श्रीराधा विशुद्ध, परिपूर्ण, सबको पवित्र करने वाले मधुर प्रेम की सुधा-धारा हैं, जो सदा सबको सुधा-प्लावित करती रहती हैं- मर्त्य-जगत के कामोप भोग से मुक्त करके नित्य सत्य दिव्य प्रेम सरिता में बहाती रहती हैं। ये श्रीराधा स्वयं लीलामयी हैं और श्रीकृष्ण की पवित्र लीलाओं में सदा सहायिका हैं। |
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