श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा-माधव की मधुर लीला अनन्त है। जिन भाग्यवानों के मानस नेत्रों में इनका उदय होता है, वे ही इनके आनन्द का अनुभव करते हैं। अनिर्वचनीय का निर्वचन तो असम्भव ही है - ‘अनिर्वचनीयं प्रेमस्वरूपम्।’ परंतु उपर्युक्त विवेचन से श्रीराधा-माधव के तत्त्व-स्वरूप की, साधना की कुछ बातें समझ में आयी होंगी। इसी व्याज से श्रीराधा-माधव का कुछ चिन्तन बन गया। यही इस तुच्छ प्राणी का परम सौभाग्य है। आज रस-प्रेम-स्वरूप श्रीश्यामसुन्दर की अभिन्नरूपा श्रीराधा का यह प्राकट्य-महा महोत्सव है। हमारा परम सौभाग्य है कि इस सुअवसर पर श्रीराधा के चरण-स्मरण का यह शुभ संयोग उपस्थित हुआ है। आइये, अन्त में हम सब मिलकर प्रार्थना करें—
बोलो श्रीकीर्तिकुमारी वृषभानुनन्दिनी श्रीकृष्णानन्दिनी राधारानी की जय! जय!! जय!!! |
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