श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
‘प्राण प्रियतम! मुझे क्षणभर के लिये यदि कभी तुम उदास देख पाते हो तो प्रियतम! सारा आनन्द भूलकर तुम अत्यन्त व्याकुल हो उठते हो। कभी किसी कारण जब मेरे नेत्र कोण भर आते हैं, तब तुम अत्यन्त उदास होकर आँखों से अपार आँसू बहाने लगते हो। कभी यदि मेरे मुख पर तनिक-सी म्लानता की छाया भी आ जाती है तो उसे देखकर उसी क्षण तुम्हारी छाती धड़कने लगती है। कभी मेरे मुख पर तनिक मुस्कान देख लेते हो तो तुमको अतशय सुख होता है और तुम्हारा मन अत्यन्त आनन्द मग्न होकर सारी सुध-बुध खो देता है। मुझको सुखी बनाने और सुखी देखने के लिये ही प्रियतम, प्रतिपल तुम्हारे मधुर पवित्र विचार और त्यागमय समस्त कार्य होते हैं। मेरे तनिक-से सुख-दुःख तुम्हें अतिशय सुखः-दुःख देते हैं। तुम्हारे इन पवित्र भावों को ग्रहण करके मेरा मन निरन्तर अत्यन्त सुख का अनुभव करता है। ‘तुमने मुझको अपरिमित दिया, अपरिमित दे रहे हो और आगे भी सदा अपरिमित देते ही रहोगे। तुम मेरे द्वारा सदा ही अपमान-अवज्ञा सहते आये हो और भविष्य में भी सदा सहते ही रहोगे। मैंने कभी सच्चा प्रेम नहीं किया, केवल अपना ही सुख देखा। अपने ही सुख के लिये तुम्हें कभी रुलाया, कभी हँसाया। कुछ भी हिसाब नहीं रखा। |
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