श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
“क्योंकि श्रीराधा की पूजा किये बिना मनुष्य श्रीकृष्ण की पूजा के लिये अनधिकारी माना जाता है, इसलिये वैष्णव मात्र का कर्तव्य है कि वे श्रीराधा की पूजा अवश्य करें। श्रीराधा श्रीकृष्ण की प्राणाधिका देवी हैं। कारण, भगवान इनके अधीन रहते हैं। ये नित्य रासेश्वरी भगवान के रास की नित्य स्वामिनी हैं। इनके बिना भगवान रह ही नहीं सकते। ये सम्पर्णू कामनाओं को सिद्ध करती हैं, इसी से ये ‘राधा’ नाम से कही जाती हैं।” श्रीराधा का इस प्रकार ध्यान रखना चाहिये- ‘श्रीराधा का वर्ण श्वेत चम्पाकुसुम के सदृश है। मुख शारदीय शशि का गर्व हरण करता है, श्रीविग्रह असंख्य चन्द्रमाओं की कान्ति के सदृश झलमल करता है। नेत्र शरद-ऋतु के खिले हुए कमल के समान हैं। अरुण अधर बिम्बफल के सदृश, स्थूल श्रोणि और क्षीण कटि प्रदेश दिव्य करधनी से अलंकृत हैं। कुन्द-कुसुम के सदृश इनकी स्वच्छ दन्तपंक्ति सुशोभित है। दिव्य नील पट्टवस्त्र इन्होंने धारण कर रखा है। इनके प्रसन्न मुखारविन्द पर मृदु मुस्कान की छटा छायी है। उन्नत उरोज हैं। दिव्य रत्नमय विविध आभूषणों से विभूषित ये देवी नित्य बालरूप में अल्पवर्षीया प्रतीत होती हैं। इनके कुन्चित केश मल्लिका और मालती की मालाओं से सुशोभित हैं। अंग-प्रत्यंग अत्यन्त सुकुमार हैं। इनका श्रीविग्रह मानो शोभा- श्रीका लहराता हुआ अनन्त सागर है। ये शान्त स्वरूपा शाश्वतयौवना राधाजी रास मण्डल में समस्त गोपांगनाओं की अधीश्वरी के रूप में रत्नमय सिंहासन पर विराजमान हैं। वेद इन श्रीकृष्णप्राणाधिका परमेश्वरी की महिमा का गान करते हैं। |
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- ↑ श्रीदेवीभागवत 9। 50। 16 से 18
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