श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
इन भगवान श्रीकृष्ण की आत्मा हैं श्रीराधारानी-
“श्रीराधा भगवान श्रीकृष्ण की आत्मा हैं, उनके साथ सदा रमण करने के कारण ही रहस्य-रस के मर्मज्ञ ज्ञानी पुरुष श्रीकृष्ण को ‘आत्माराम’ कहते हैं।” इसी प्रसंग में भगवान की महिषी श्रीकालिन्दीजी कहती हैं— ‘आत्माराम भगवान श्रीकृष्ण की आत्मा निश्चय ही श्रीराधाजी हैं।’ इन श्रीराधा-माधव का भाव राज्य अतिशय उज्ज्वल है। वहाँ प्रिया-प्रियतम की अचिन्त्य-अमल मधुरतम लीला नित्य चलती रहती है। ‘अक्षर कूटस्थ ब्रह्म’ जिनकी पद-नख-ज्योति हैं और जो ब्रह्म के आधार हैं, उन परात्पर श्यामसुन्दर का लीला विहार वहाँ निरन्तर होता रहता है। वह लीला का महान् मधुर सागर अत्यन्त शान्त होने पर भी सदा उछलता रहता है। स्वयं नट नागर ही विविध मनोहारिणी भावलहरियाँ बनकर खेलते रहते हैं। वह भाव राज्य में ज्ञान-विज्ञान छिपे रहकर रसिकेन्द्र-शिरोमणि रसरूप भगवान श्यामसुन्दर के द्विधारूप श्रीराधा-माधव का और श्रीराधा की कायव्यूहरूपा श्रीगोपांगनाओं का मधुरतम लीला-रस-रंग देखते रहते हैं। जो ज्ञानी-विज्ञानी महात्मा इस भाव राज्य में पहुँचते हैं, उनके वे ज्ञान-विज्ञान यहाँ अपने ही दुर्लभ फल का संग पाकर पर प्रफुल्लित हो जाते हैं। ज्ञान-विज्ञान के अधिष्ठातृ-देवता सदा अतृप्त ही रहते हैं; क्योंकि उन्हें लीला-रस का पान करने के लिये कभी अवसर ही नहीं मिलता। |
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- ↑ स्कन्दपुराण
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