श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
ज्ञान तत्त्व में परिनिष्ठित ब्रह्मीभूत महात्मा, जिनकी अज्ञान-ग्रन्थि टूट चुकी है- ऐसे आत्माराम मुनि भी भगवान की अहैतु की भक्ति करने को बाध्य होते हैं; क्योंकि भगवान में ऐसे विलक्षण स्वरूप भूत गुण हैं-
इसी से भगवान श्रीकृष्ण का एक सुन्दर नाम है- ‘आत्मारामगणाकर्षी’ आत्माराम मुनिगणों को आकर्षित करने वाले। कुन्तीदेवी ने भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए कहा है-
‘आप अमलात्मा- विशुद्ध हृदय परमहंस मुनियों को भक्तियोग प्रदान करने के लिये प्रकट हुए हैं। फिर हम अल्पज्ञ स्त्रियाँ आपको कैसे जान सकती हैं।’ इसी से ज्ञानी महात्मा पुरुष मुक्ति का निरादर करते हैं और भक्ति निष्ठ रहना चाहते हैं- ‘मुक्ति निरादर भगति लुभाने।’ मुक्ति उनके पीछे-पीछे घूमती है, पर वे उसे स्वीकार नहीं करते; क्योंकि वे संसार के माया बन्धन से सर्वथा मुक्त हैं ही, भगवान के प्रेम बन्धन से मुक्ति उन्हें कदापि इष्ट नहीं! ऐसे प्रेमी भक्त जिन भगवान को प्रेमरसास्वादन कराते हैं और स्वयं जिनके मधुरातिमधुर दिव्य प्रेम सुधा रस का पान करते हैं, वे भगवान निस्संदेह ही सर्वतत्त्वविलक्षण हैं। |
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