श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
तदनन्तर उन्होंने श्रीकृष्णप्रिया का स्तवन आरम्भ किया। न जाने कितने समय तक करते रहे। अन्त में राधा मुखारविन्द से युगल पादपद्भों में अचला भक्ति का वर पाने पर उन्हें धैर्य हुआ। अब उस लीला का कार्य सम्पन्न करने चले। श्रीराधा एवं राधानाथ को प्रणामकर दोनों के बीच में विधाता अग्नि प्रज्वलित करते हैं, अग्नि में विधिवत हवन करते हैं; फिर विधाता के द्वारा बताये हुए विधान से स्वयं रासेश्वर हवन करते हैं। इसके पश्चात रासेश्वरी-रासेश्वर दोनों ही सात बार अग्निप्रदक्षिणा करते हैं, अग्निदेव को प्रणाम करते हैं। विधाता की आज्ञा मानकर श्रीराधा एक बार पुनः हुताशनप्रदक्षिणा करके श्रीकृष्णचन्द्र के समीप आसन ग्रहण करती हैं। ब्रह्मा श्रीकृष्णचन्द्र को श्रीराधा का पाणिग्रहण करने के लिये कहते हैं तथा श्रीकृष्णचन्द्र राधा-हस्त कमल को अपने हस्त कमल पर धारण करते हैं। हस्त ग्रहण होने पर श्रीकृष्णचन्द्र ने सात वैदिक मन्त्रों का पाठ किया। इसके पश्चात श्रीराधा अपना हस्त कमल श्रीकृष्ण-वक्षःस्थल पर एवं श्रीकृष्णचन्द्र अपना हस्पद्म श्रीराधा के पृष्ठदेश पर रखते हैं। श्रीराधा मन्त्र-समूह का पाठ करती हैं। आजानुलम्बित दिव्यातिदिव्य पारिजातनिर्मित कुसुममाला श्रीराधा श्रीकृष्णचन्द्र को पहनाती हैं एवं श्रीकृष्णचन्द्र सुन्दर मनोहर वनमाला श्रीराधा के गले में डालते हैं। यह हो जाने पर कमलोद्भव श्रीराधा को श्रीकृष्णचन्द्र के वामपार्श्र्व में विराजित कर, दोनों को अंजलि बाँधने की प्रार्थना कर दोनों के द्वारा पाँच वैदिक मन्त्रों का पाठ कराते हैं। अनन्तर श्रीराधा श्रीकृष्णचन्द्र को प्रणाम करती हैं। जैसे पिता विधिवत् कन्यादान करे, वैसे सारी विधि सम्पन्न करते हुए विधाता श्रीराधा को श्रीकृष्ण-कर-कमलों में समर्पित करते हैं। आकाश दुन्दुभि, पटह, मुरज आदि देव-वाद्यों से ध्वनि की निनादित होने लगता है। आनन्द-निमग्न देववृन्द पारिजात-पुष्पों की वर्षा करते हैं, गन्धर्व मधुर गान आरम्भ करते हैं, अप्सराएँ मनोहर नृत्य करने लगती हैं। व्रज गोपों के, व्रज सुन्दरियों के सर्वथा अनजान में ही इस प्रकार वृषभानुनन्दिनी एवं नन्दनन्दन की विवाह-लीला सम्पन्न हो गयी। |
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