श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
इसी प्रसंग में भगवान की महिषी श्रीकालिन्दीजी कहती हैं- ‘आत्माराम भगवान् श्रीकृष्ण की आत्मा निश्चय ही राधिकाजी हैं।’ इससे श्रीराधा-कृष्ण के स्वरूप तथा परस्पर सम्बन्ध का पूरा पता लग जाता है। इन्हीं श्रीराधिकाजी को प्रेमी भक्तों ने प्रेम रस का आदर्श माना है। श्रीकृष्ण अपनी ही ह्लादिनी शक्ति से आप ही आह्लादित होते हैं और अपने आह्लाद से नित्य श्रीराधाजी को आह्लादित करते रहते हैं। यह आनन्द चिन्मय रस की नित्य रस लीला है। यहाँ वस्तुतः प्रकृति-पुरुष या देह-देही का भेद नहीं है। ‘ना सो रमण ना हाम रमणी’ श्रीराधिकाजी के कवि दर्शित इन शब्दों में यही भाव है। तथापि श्रीराधाजी नित्य-निरन्तर श्रीकृष्ण की आराधना, भावमयी पूजा करती रहती हैं और श्रीकृष्ण तो अपने जीवन की मूल रक्षा निधि ही उनको बतलाते हैं। वे कहते हैं—
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