श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
वे अपनी तिरछी चितवन तथा मधुर मन्द मुस्कान के द्वारा करोड़ों कामदेवों के समान सुन्दरता धारण कर अपने सिकोड़े हुए अधरों पर वंशी रखकर बजा रहे हैं और उस मुरली की मधुर स्वर-लहरी से त्रिभुवन को मोहित करते हुए सबको प्रेम-सुधा-सागर में निमग्न कर रहे हैं।’ “देवी! जिनके नख-चन्द्र-किरणों की महिमा का भी अन्त नहीं है, उन्हीं भगवान श्रीकृष्ण की महिमा के सम्बन्ध में मैं कुछ और बता रहा हूँ; तुम मुदित मन से सुनो। त्रिगुणमय अनन्तकोटि ब्रह्माण्डों में जितने ब्रह्म-विष्णु-महेश्वर हैं, सब उनकी कला के करोड़वें-करोड़वें अंश से उत्पन्न हैं। सृष्टि, स्थिति और संहार की शक्ति से युक्त वे ब्रह्मा आदि देवता उन्हीं श्रीकृष्ण के ‘वैभव’ हैं। उन श्रीकृष्ण के रूप का जो करोड़वाँ अंश है, उसके भी करोड़ अंश करने पर एक-एक अंश-कला से ऐसे असंख्य कामदेवों की उत्पत्ति होती है, जो इस ब्रह्माण्ड में स्थित होकर जगत के जीवों को मोह में डालते रहते हैं। श्रीकृष्ण के श्रीविग्रह की शोभामयी कान्ति के करोड़वें के करोड़वे अंश से चन्द्रमा का आविर्भाव हुआ है। श्रीकृष्ण के प्रकाश के करोड़वें अंश से जो किरणें निकलती हैं, वे ही अनेकों सूर्यों के रूप में प्रकट होती है। उनके साक्षात श्रीविग्रह से जो प्रकाश-किरणें प्रकट होती हैं, वे परमानन्दमय रसामृत से परिपूर्ण हैं। वे परम आनन्द और परम चैतन्यमयी है, उन्हीं के इस विश्व के ज्योतिर्मय जीव जीवन धारण किये हुए हैं, जो भगवान के ही कोटि-कोटि अंश हैं। उनके चरण-कमल-युगल के नख रूपी चन्द्रकान्त मणि से निकलने वाली प्रभाव को ही ‘पूर्वब्रह्म’ बताया गया है, जो सबका कारण है और वेदों के लिये भी दुर्गम है। विश्व को मोहित करने वाला जो नाना प्रकार के पुष्पादि का सौरभ (सुगन्ध) है, वह सब उनके श्रीविग्रह की दिव्य सुगन्ध का करोड़वाँ अंश मात्र है। भगवान के स्पर्श से ही सब सुगन्धों का प्रादुर्भाव होता है। इन श्रीकृष्ण की प्रिया इनकी प्राण वल्लभा श्रीराधिका हैं। ये ही आद्या (श्रीकृष्णमयी) प्रकृति हैं। इन्हीं श्रीराधिका के करोड़वें के करोड़वे अंश से त्रिगुणातिमका दुर्गा आदि देवियों की उत्पत्ति हुई है। इन राधिका के पद-रजः-स्पर्श से करोड़ों विष्णु उत्पन्न होते हैं।”[1] |
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क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
- ↑ पद्भपुराण, पातालखड
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