श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
इन अखिल-जगदीश्वरी, रासेश्वरी, नित्यनिकुञ्जेश्वरी, नित्य-श्रीकृष्णवल्लभा, श्रीकृष्णात्मा, श्रीकृष्णप्राणस्वरूपा, श्रीकृष्णाराधनतत्परा, श्रीकृष्णाराध्या श्रीराधाजी का मंगलमय दर्शन प्राप्त करने के लिये देवर्षि नारद श्रीवृषभानुपुर पहुँचे और वहाँ वृषभानु के साथ प्रसूति घर में प्रवेश करके पृथ्वी पर सोयी हुई अखिल-जगज्जननी अखिल-सौन्दर्य-प्रतिमा नवजात कन्या को देखकर वे मुग्ध हो गये और एकमात्र रसायन रूप परमानन्द सिन्धु में अवगाहन करने लगे। तदनन्तर उन्होंने कन्या को अपनी गोद में उठा लिया और गोप प्रवर भानु को कार्यान्तर से कहीं अन्यत्र भेजकर वे उन दिव्य रूप धारिणी बालिका की स्तुति करने लगे। नारद बोले- ‘देवि! तुम महायोगमयी हो, माया की अधीश्वरी हो। तुम्हारा तेजःपुञ्ज महान है। तुम्हारे दिव्यांग मन को अत्यन्त मोहित करने वाले हैं। तुम महान् माधर्यु की वर्षा करने वाली हो। तुम्हारा हृदय अत्यन्त अद्भुत रसानुभूतिजनित दिव्य आनन्द से परिप्लुत तथा शिथिल रहता है। मेरा कोई महान सौभाग्य था, जिससे तुम मेरे नेत्रों के समक्ष प्रकट हुई हो। देवि! तुम्हारी दृष्टि सदा आन्तरिक दिव्य सुख में निमग्न दिखायी देती है। तुम भीतर-ही-भीतर किसी अगाध आनन्द से परितृप्त जान पड़ती हो। तुम्हारा यह प्रसन्न, मधुर एवं शान्त मुखमण्डल तुम्हारे अन्तःकरण में किसी परम आश्चर्यमय आनन्द के उद्रेक की सूचना दे रहा है। सृष्टि, स्थिति और संहार तुम्हारे ही स्वरूप हैं; तुम्हीं इनका अधिष्ठान हो। तुम्हीं विशुद्ध सत्त्वमयी हो तथा तुम्हीं पराविद्यारूपिणी शक्ति हो। तुम्हारा वैभव आश्चर्यमय है। ब्रह्मा और रुद्र आदि के लिये भी तुम्हारे तत्त्व का बोध होना कठिन है। बड़े-बडे योगीश्वरों के ध्यान में भी तुम कभी नहीं आतीं। तुम्हीं सबकी अधीश्वरी हो। इच्छा-शक्ति, ज्ञान-शक्ति और क्रिया-शक्ति- ये सब तुम्हारे अंशमात्र हैं। ऐसी ही मेरी धारणा है- |
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